कविता

गीत

लहरें सागर की हैं – चाहत साहिल से है
टूटता नहीं – यह बंधन कभी
लहरों का सागर से है
मगर चाहत – साहिल से है

सागर ने सोचा एक दिन – छुपा लूँ मैं गहरे तले
हल्का-सा झोंका, छूने लगा जब – लहरें उड़ने लगीं
अँगड़ाइयाँ लेने लगीं
सावन की बूँदें बरसाने लगीं
साहिल से मिलने लगीं

चुपती रातें चाँद की किरणें – गीली गीली रेतें
सागर की बाहें और ये निगाहें – आहें भरने लगीं
कामोशियाँ मँडराने लगीं
चाहत सागर की जलने लगी
आँखें रोने लगीं

— धनंजय वितानागे