पुस्तक समीक्षा

सिमट गये संवाद : यथार्थ से मुठभेड़

जिस साहित्यकार के साहित्य में अपने समय की संवेदना व्यक्त नहीं होती उसका लेखन शीघ्र काल-प्रवाह में विलीन हो जाता है I हिंदी और बज्जिका के सशक्त हस्ताक्षर हरिनारायण सिंह ‘हरि’ के साहित्य में समकालीन सामाजिक और राजनैतिक जीवन अपनी समस्त विडम्बनाओं एवं खूबियों के साथ अभिव्यक्त हुआ है I उन्होंने छोटी–छोटी घटनाओं को आधार बनाकर काव्य रचना की है I इनकी कविताएँ मानव मन पर गहरा प्रभाव छोडती हैं I इनकी कविताओं में मानवीय मूल्यों को प्रतिस्थापित करने की छटपटाहट है I जीवनानुभवों से प्रेरित इनकी काव्य रचनाओं में वर्तमान साँसे लेता है और भविष्य आशावाद के पुष्प–पराग बिखेरता है I इनकी कविताएँ काल के गीत सुनाती हैं और सच्चाइयों के साथ अठखेलियाँ करती है I इनकी कविताएँ मानव–मन के एकांत में झाँककर भावनाओं के आरोह–अवरोह व छटपटाहट को आकार देती हैं I हरि जी के साहित्य का फलक अत्यंत विस्तृत है I वे बज्जिकांचल की माटी से गहरा जुड़ाव रखते हैं I फलतः इनके साहित्य में बज्जिकांचल की सोंधी महक और ग्राम्य जीवन की सुगंध है I इन्होंने गाँव की मूक वेदना को वाणी दी है I वे रूढ़ियों से ग्रस्त जड़ समाज में प्राण का संचार करना चाहते हैं I इनके मन में ग्रामोद्धार का सपना पल रहा है I वे जानते हैं कि गाँव के विकास का मतलब देश का विकास है I केवल आजादी मिल जाने मात्र से देश का विकास नहीं हो सकता, बल्कि कुशासन, भ्रष्टाचार और राजनैतिक प्रपंचों से मुक्ति ही देश के विकास का मार्ग प्रशस्त कर सकता है I भारत के राजनैतिक परिदृश्य और पतनशील व्यवस्था पर हरि जी के शब्दों के घातक प्रहार की अनुगूंज दूर तक सुनाई पड़ती है I दोहा मुक्तक काव्य का प्रधान छंद और साहित्य की एक लोकप्रिय विधा है जो कम शब्दों में अधिक भावराशि को समेट लेती है I इसमें संक्षिप्त और तीखी भावव्यंजना को प्रकट करने की अद्भुत क्षमता होती है I दोहा लिखना गागर में सागर भरने के समान है I बहुआयामी प्रतिभा के धनी साहित्यकार श्री हरिनारायण सिंह ‘हरि’ ने अपने दोहा संग्रह ‘सिमट गये संवाद’ के दोहों के माध्यम से गागर में सागर भरने का उपक्रम किया है I श्री हरि ऐसे शब्द साधक हैं जिन्होंने साहित्य की प्रायः सभी विधाओं में अपनी प्रतिभा की सुगंध बिखेरी है I उन्होंने साहित्य की जिस विधा को स्पर्श किया वह विधा उनकी सर्जनात्मक प्रतिभा से निहाल हो गई I ‘सिमट गये संवाद’ का आरंभ ईश वंदना से होता है I इन्होंने गणेश, माँ शारदे, माता-पिता और गुरु की वंदना करते हुए अपनी वाणी में माधुर्य की कामना की है-
वाणी में माधुर्य दो, लेखन रस से सिक्त
गद्य-पद्य-आलोचना, शक्ति भरो अतिरिक्त I
आजकल धर्म के नाम पर पाखंड और अधर्म का बोलबाला है I मानवता सिसक रही है और सामाजिक मूल्यों का निरंतर क्षरण हो रहा है I हरि जी ने मानवता को सबसे बड़ा धर्म बताया है I उन्होंने परोपकार को सर्वश्रेष्ठ धर्म सिद्ध किया है-
मानवता दिखलाइए, यही उचित है धर्म
परहित से अच्छा नहीं, जग में कोई धर्म I
‘सिमट गये संवाद’ के दोहों में युग-जीवन की विद्रूपताओं, विसंगतियों और विडंबनाओं को रेखांकित किया गया है I ‘नेता करे न चाकरी’ शीर्षक दोहों में भारत के राजनैतिक प्रपंच, नवसामंतवाद और पाखंड पर निर्मम प्रहार किया गया है-
लोकतंत्र की कोख से, जन्मे नव सामंत
जिनसे व्याकुल हो उठे, जन-गण-मन अत्यंत
करना-धरना कुछ नहीं, राजनीति व्यवसाय
कोई इनसे पूछ ले, इसमें इतनी आय ?
भारतीय लोकतंत्र के सम्मुख सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न यह है कि अच्छे लोग राजनीति में शामिल क्यों नहीं होना चाहते I राजनीति उन लोगों की शरणस्थली बन गई है जो दुर्जन, झूठे और अपराधी हैं I ‘लोकतंत्र विकलांग है’ शीर्षक दोहों में हरि जी ने भारतीय राजनीति के गिरते स्तर पर चिंता व्यक्त की है I यह संसदीय लोकतंत्र का कैसा मजाक है कि राजनैतिक दल टिकट बेंचते हैं और जनता जाति, धर्म और लोकलुभावन नारों के आधार पर वोट देती है I जनता शराब, पैसे और मुफ्त राशन-पानी के लोभ में वैसे उम्मीदवारों को भी अपना भाग्यविधाता चुन लेती है जिनके हाथ खून से रंगे होते हैं I हरि जी ने अपने दोहों में नेताओं की करतूतों व सिस्टम की खामियों का पोस्टमार्टम किया है-
उत्तम पुरुष न आ सकें, राजनीति में एक
इस संसदीय तंत्र की, विस्मयकारी टेक
टिकट बेंचती पार्टियाँ, जनता बेंचे वोट
तुमको क्या दिखती नहीं, सिस्टम की यह खोट I
भारत में कहने को तो लोकतंत्र है, लेकिन यह तंत्र लोकहितैषी नहीं है I लोक का तंत्र से संबंध विच्छेद हो गया है I भारत का लोकतंत्र धनपशुओं का चरागाह बन गया है I कहने को यहाँ लोकतंत्र है, लेकिन वस्तुतः यह लूटतंत्र, वोटतंत्र, धनतंत्र और भ्रष्टतंत्र में तब्दील हो गया है-
जीवन भर लूटा किया, रहा नहीं इंसान
लोकतंत्र ऐसा हुआ, वह तो हुआ महान
भारत का लोकतंत्र अब पार्टीतंत्र बन गया है I पार्टी विजय को ही भारत विजय घोषित करने का प्रयास किया जा रहा है I राजनैतिक दलों ने लोकतंत्र को कैद कर लिया है I भारत का लोकतंत्र दलों के दलदल में फँसकर सिसक रहा है-
दल के दलदल में फँसा, रहा आदमी सोच
लोकतंत्र के तंत्र में, बड़े-बड़े हैं खोंच
लट्ठम-लाठी कर रहे, मुद्दा बना किसान
लोकतंत्र में लट्ठ ले, बन बैठे शैतान
नेताओं और पार्टियों का मुख्य ध्येय वोट लेना और सत्ता सुख भोगना मात्र रह गया है I वोट के लिए वे समाज में जातिवाद का विष घोलते हैं I ‘मतलब केवल वोट से’ शीर्षक दोहे भारतीय नेताओं के छद्म, पाखंड और पतनशील राजनीति का पोस्टमार्टम करते हैं-
राजनीति टुच्ची हुई, जो दे ज्यादा बाँट
वह गुलाब-सा खिल उठे, जो बोये नित काँट
अच्छे की चलती नहीं, पकड़ लिए वे खाट
दुर्जन बैठा माथ पर, अजब निराली ठाट
कवि का संवेदनशील मन किसानों की दयनीय दशा को देखकर बेचैन है I देश में किसानों की चिंता करनेवाला कोई नहीं है I स्पष्ट किसान नीति न होने के कारण किसान कर्ज लेने और आत्महत्या करने के लिए अभिशप्त हैं I कई दशकों से भारत में किसानों के नाम पर राजनीति की जा रही है I संगठनों और आन्दोलनों की पीठ से गुजरकर अनेक नेता संसद में पहुँच गए, लेकिन किसानों की दशा पर आँसू बहानेवाला कोई नहीं है I ‘कौन किसानी अब करे’ शीर्षक दोहे भारत के किसानों की व्यथा-कथा को वाणी देते हैं-
नहीं समझ कोई रहा, इस किसान का दर्द
क्योंकर इसका हो रहा, मुखड़ा इतना जर्द
सब मिलकर हैं लूटते, लुटते नित्य किसान
संचालक इस देश के, बेंच चुके ईमान
‘रावण का व्यापार’ शीर्षक दोहों में पौराणिक पात्र रावण के माध्यम से व्यवस्था की दुर्बलताओं पर कशाघात किया गया है I इस युग में बार-बार मर्यादा की सीता का अपहरण किया जाता है, लेकिन मर्यादा रूपी सीता की रक्षा करने के लिए कोई राम नहीं आता I अब कोई राम नहीं है जो कलियुग के रावण का वध कर सके I हर कदम पर व्यवस्था का रावण आम आदमी की आकांक्षाओं को लील लेने के लिए तैयार बैठा है-
रामराज्य की कल्पना, बस कल्पित आचार
लोकतंत्र में फल रहा, रावण का व्यापार
हरि जी ने लालबहादुर शास्त्री, अमन चाँदपुरी, कैलाश झा किंकर आदि के प्रति अपनी काव्यमय श्रद्धा निवेदित की है I हरि जी ने शास्त्रीजी को भारत माता का सच्चा सपूत घोषित किया है-
माँ के सच्चे पूत थे, वीर बहादुर लाल
लालबहादुर कर गए, माँ का ऊँचा भाल
हरि जी शब्दों के मौन साधक हैं I इनकी कविताएँ सहज होती हैं और पाठकों के अंतर में उतर जाती हैं I हरि जी का पाखंडहीन जीवन और साहित्य के प्रति उनका निःस्वार्थ समर्पण वरेण्य है I संजय पंकज ने एक दोहे में हरि जी के व्यक्तित्व का सम्पूर्ण आकलन प्रस्तुत कर दिया है-
मित्रों के हैं मित्र हरि, कविता-साधक मौन
गीत-ग़ज़ल-कविता रमें, गद्य रहे तब गौण
हरि जी के दोहा संग्रह ‘सिमट गये संवाद’ के दोहों में जीवन का ताप और यथार्थ की खुशबू है I इन कविताओं में शब्द रूपी डंडे से विद्रूपताओं पर निर्मम चोट की गई है I ये दोहे कल्पना–लोक से निःसृत नहीं हुए हैं, बल्कि यथार्थ जीवन से प्रेरणा लेकर कवि ने युगीन सच्चाइयों को शब्दांकित किया है I यह कविता नहीं, बल्कि सामयिक यथार्थ का प्रतिबिंब है I दोहाकार ने जीवन की पाठशाला में बैठकर इन दोहों को आकार दिया है I हरि जी के जीवन के कटु अनुभवों ने दोहा का रूपाकार धारण कर लिया है I कवि ने सरल शब्दों के माध्यम से युग-जीवन की परतें खोल दी हैं I भाव और कला की दृष्टि से भी संग्रह के दोहे अत्यंत प्रभावशाली हैं I
पुस्तक-सिमट गये संवाद
कवि-हरिनारायण सिंह ‘हरि’
प्रकाशक-श्वेतवर्णा प्रकाशन, नई दिल्ली
वर्ष-2022
पृष्ठ-100
मूल्य-160/-

*वीरेन्द्र परमार

जन्म स्थान:- ग्राम+पोस्ट-जयमल डुमरी, जिला:- मुजफ्फरपुर(बिहार) -843107, जन्मतिथि:-10 मार्च 1962, शिक्षा:- एम.ए. (हिंदी),बी.एड.,नेट(यूजीसी),पीएच.डी., पूर्वोत्तर भारत के सामाजिक,सांस्कृतिक, भाषिक,साहित्यिक पक्षों,राजभाषा,राष्ट्रभाषा,लोकसाहित्य आदि विषयों पर गंभीर लेखन, प्रकाशित पुस्तकें : 1.अरुणाचल का लोकजीवन (2003)-समीक्षा प्रकाशन, मुजफ्फरपुर 2.अरुणाचल के आदिवासी और उनका लोकसाहित्य(2009)–राधा पब्लिकेशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 3.हिंदी सेवी संस्था कोश (2009)–स्वयं लेखक द्वारा प्रकाशित 4.राजभाषा विमर्श (2009)–नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 5.कथाकार आचार्य शिवपूजन सहाय (2010)-नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 6.हिंदी : राजभाषा, जनभाषा, विश्वभाषा (सं.2013)-नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 7.पूर्वोत्तर भारत : अतुल्य भारत (2018, दूसरा संस्करण 2021)–हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 8.असम : लोकजीवन और संस्कृति (2021)-हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 9.मेघालय : लोकजीवन और संस्कृति (2021)-हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 10.त्रिपुरा : लोकजीवन और संस्कृति (2021)–मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 11.नागालैंड : लोकजीवन और संस्कृति (2021)–मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 12.पूर्वोत्तर भारत की नागा और कुकी–चीन जनजातियाँ (2021)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली – 110002 13.उत्तर–पूर्वी भारत के आदिवासी (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली– 110002 14.पूर्वोत्तर भारत के पर्व–त्योहार (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली– 110002 15.पूर्वोत्तर भारत के सांस्कृतिक आयाम (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 16.यतो अधर्मः ततो जयः (व्यंग्य संग्रह-2020)–अधिकरण प्रकाशन, दिल्ली 17.मिजोरम : आदिवासी और लोक साहित्य(2021) अधिकरण प्रकाशन, दिल्ली 18.उत्तर-पूर्वी भारत का लोक साहित्य(2021)-मित्तल पब्लिकेशन, नई दिल्ली 19.अरुणाचल प्रदेश : लोकजीवन और संस्कृति(2021)-हंस प्रकाशन, नई दिल्ली मोबाइल-9868200085, ईमेल:- [email protected]