स्नेह की स्नेहिल सुगंध
सुमन से सुरभिमय गंध का, रिश्ता बड़ा पुराना,
खिले-झड़े-टूटे चाहे, भंवरा भी है दीवाना.
प्रेम के प्रेमिल महक की, महिमा कही न जाय,
निखरे तो निहाल करे, बिखरे अमर हो जाय.
स्नेह की स्नेहिल सुगंध, सराबोर कर जाय,
समता-इज्जत-मान से, मन जगमग कर जाय.
कर्म की कर्मठ सुगंध, अपना सानी आप,
बिन आहट-आवाज के, हरती सारे ताप.
देश की माटी की महक, मन में जिसके समाय,
खुद में वह संतुष्ट रहे, काम देश के आय.
साहित्य की सुभग सुवास से, सुरभित है संसार,
हित-रंजन-अंजन लगे, ज्ञान भी बढ़े अपार.
सुगंध सफलता की अमित, है जीवन का सार,
अर्थार्जन-यश-उमंग से, मिले सभी का प्यार.
निज गुण-धर्म-सुगंध से, मन में मोद समाय,
फहरे परचम प्रेम का, जग सुरभित हो जाय.