अलबेली बसन्त
हवाएं सनन सनन बहती जाती।
चुपके से कानों में मीठा कुछ कहती जाती।।
बसंत आयी खुशियों की बहार लायी।
जीवों से सरगम संगीत सहार लायी।।
पेड़-पौधे महके सारे।
डाल-डाल पंछी चहके सारे।।
अलबेली बसन्त बन जा मेरी सहेली।
ना कर मुझ से यूं अटखेली।।
शीतल हवा बनी प्यारी सहेली।
रही ना वह भी अब तो अकेली।।
डाल-डाल झूमकर गीत गाए।
एक-दूजे को गले लगाए।।
रंग-बिरंगे फूल खिले हैं।
एक-दूजे को गले मिले हैं।।
धरती का हर एक कोना खिला है।
ऐसा मौसम ढूंढे को मिला है।।
कभी तेज हवा का झोंका आता।
नन्ही कलियों को दुःख पहुंचाता।।
चांदनी रात संग तारे गुपचुप बतियाएं।
अपने-अपने राग साज समझाएं।।
बसंत अपना सारा रंग दिखाए।
करूणा, प्रेम का पाठ सिखाए।।
बादल नभ में उमड़़-उमड़ आएं।
पीड़ा वियोग मिलन अति सताएं।।
बसंत आए पतझड़ बन जाए नवेली।
मैत्री, प्रेम सब एक पहेली।।
बसंत आयी, अलबेली बसंत आयी।
जीवों से सरगम संगीत सहार लायी।।
जब आए बसंत की फुहार।
खुशी संग लाए और अद्भूत उपहार।।
पींग पराग एक दूजे में चूर।
प्यार से देख ना यूं घूर।।
मधुर राग सुनावे मोर, कोयल आज।
मन मस्त है सुर लय ताल सब एक साज।।
— डॉ. सुरेश जांगडा