लघुकथा – दर्द
“सुनो जी। मुझे लगता है, हम दोनों के संबंध में कुछ बासीपन- सा आ गया है। ऐसा कुछ करो न कि कुछ ताजगी आ जाये।”
” ये तुम सुबह -सुबह क्या कह रही हो?” चाय की प्याली को टेबिल पर रखते हुए पति ने कहा।
“क्यूं , मैं ग़लत कह रही हूंँ क्या ? जो महसूस कर रही हूँ,उसे ही बयान कर रही हूँ।” पचपन साल की पत्नी ने बेहिचक कहा।
” हमारी शादी के तीस साल हो गए। कभी पति- पत्नी के बीच किसी बात को लेकर रार नहीं हुई । दोनों बच्चे सेटल्ड होकर अपने-अपने कार्य स्थल पर सपरिवार मजे में हैं। तुम्हें किसी चीज की कमी नहीं। फिर…!”
“ये सारी बातें गलत नहीं हैं। लेकिन…।”
“लेकिन क्या ?”
“क्या आप मेरे दोस्त नहीं बन सकते?”
“पत्नी की जगह दोस्त! क्या बात करती हो?”
” देखो,आप कितनी फिक्र रखते हैं अपने दोस्तों की। उनका जन्मदिवस हो या वैवाहिक वर्षगांठ कभी विश करना नहीं भूलते। और..और आपको पता है आज कौन -सा दिन है ?”
“ओह सॉरी ,मॉय डियर फ्रेंड! हैप्पी बर्थडे टू यू ! मुझे रात बारह बजे के बाद ही विश करना चाहिए था पर… चलो आज सोशल मीडिया से दूर रहकर एक यादगार दिन मनाते हैं।”
“सच्चे दिल से?”
“बिल्कुल।हांँ भाई, मेरी बेस्ट फ्रेंड तो तुम्हीं हो न?”
— निर्मल कुमार दे