कविता

न किसी से कोई ईर्ष्या न कोई जलन

परिंदों से सीखो कैसे नापना गगन

रहते हैं हर परिस्थिति में मगन

अपने में ही हमेशा रहते हैं मस्त

न किसी से कोई ईर्ष्या न कोई जलन

न ज़्यादा खाते हैं न कम हैं खाते 

न ही भविष्य के लिए कुछ हैं बचाते 

खुली किताब है इनकी ज़िन्दगी

किसी से कुछ नहीं हैं छुपाते 

अच्छा लगता है उनको अपना घोंसला

चाहत नहीं कोई बड़ा घर बनाने की

तिनका तिनका जोड़ कर बनाते हैं ठिकाना

नहीं समझते कोई जरूरत उसे सजाने की

थोड़ा बड़ा जब होता है चल देता है घर  छोड़कर

चला जाता है दूर कहीं अपना नया घर बसाने

जिंदगी में ऐसे ही आना जाना लगा रहेगा

लग जाएंगे ऐसे ही सब इंतज़ार करते करते ठिकाने

— रवींद्र कुमार शर्मा

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र