लघुकथा

धूप

“माँ आज धूप कितनी तेज है. बाहर तो बहुत बुरा हाल है.  वो तो आप है जो मुझे ऑफिस से आने से पहले ही शिकंजी बना देती है. इसको पीकर मुझे बहुत अच्छा लगता है “

यह सुनकर मानसी की सास मीरा हँसते हुए बोली “बेटी का ख्याल माँ नहीं रखेगी तो कौन रखेगा. मुझे पता तुम थककर आती हो, घर का काम भी करती हो, तो क्या मैं इतना भी नहीं कर सकती कि बेटी के लिये ” यह कहकर उन्होंने मानसी को गले लगा लिया.

मानसी की माँ बचपन में ही गुजर गई उसका लालन पालन उसके पिता ने किया| शादी के बाद मानसी को सास के रूप में माँ मिल गयी, जिसको पाकर वो बहुत खुश थी.

— पूनम गुप्ता

पूनम गुप्ता

मेरी तीन कविताये बुक में प्रकाशित हो चुकी है भोपाल मध्यप्रदेश

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