कविता

संवैधानिक नियंत्रण

अच्छा पहले ही बताना था कि

मूर्खों को भी जगाना है,

वो जिनके पास पहले से बहाना है,

सारे सोये हुये हैं,

अपनी जातिय मुग्धता पर खोये हुये हैं,

सबसे गंदा चरित्र वाले

सोचे कि हम सबसे गंदा सोये हुए हैं,

नजर नहीं आता कमजोरी खुद की,

जिन्हें नहीं चिंता अपने वजूद की,

कमजोरों की गाथा बलवान जब लिखेंगे,

अत्याचारी मृदुल और सेवक ही दिखेंगे,

मंत्रमुग्ध शोषित उसे देव ही बोलेगा,

नियति मान सहते रहेंगे जुल्मो सितम

अपने जुबां से आह तक नहीं बोल

सितम तो सितम है स्वमेव ही बोलेगा,

न्यायिक चरित्र न हो जिसके अंदर,

बतायेगा खुद को इंसाफ का समंदर,

अपने भीतर के दाग वो कैसे दिखाए,

खुद के अंदर के डर को जोश वो बताए,

समतामूलक संविधान नजर न जिनको आये,

सड़ी हुई व्यवस्था को अच्छा वो बताये,

नजर और नीयत दोनों में रखता हो खोट,

जागरूकता बढ़ाकर मारो उनको चोट,

छीनो उनकी सत्ता रखो नियंत्रण अपने हाथ,

संवैधानिक व्यवस्था देकर पा लो सबका साथ।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554

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