स्वास्थ्य

भारतीय स्वास्थ्य ज्ञान परम्परा का रुदन

सदा की तरह जनता के सुख-दुःख जानने के लिए अपने दैनिक रात्रि भ्रमण के समय जब डॉ. विक्रमादित्य नगर के खेड़ापति हनुमान मन्दिर पहुंचे तो वहां से लगभग आधा फर्लांग दूर बरगद के पेड़ के नीचे बैठी एक सुन्दर-सी स्त्री को देखा. वे तुरन्त वहां पहुंचे और उन्होंने सुन्दर वस्त्र-आभूषणों से सज्जित उस सिसकती हुई, उदास नारी से पूछा, देवी ! आप कौन हैं?

वे बोली-मैं कालजयी भारतीय स्वास्थ्य ज्ञान परम्परा हूँ.

सम्राट विक्रमादित्य- चरणों में गिरते हुए, माता ! मैं कितना सौभाग्यशाली हूँ कि पूरे विश्व में अपनी प्रभावशीलता और वैज्ञानिकता का डंका बजाने वाली देवी मां के साक्षात् दर्शन कर पा रहा हूँ. माता ! आपको तो प्रसन्न होना चाहिए कि सारी दुनिया आपका लोहा मान रही है. आपके रुदन का क्या कारण है?

देवी- वत्स ! ये बताइए कि आप कौन हो?

विक्रम- माता ! मैं इस राज्य का प्रधान सेवक, विक्रम हूँ.

देवी – वत्स ! यह सच है कि सारी दुनिया ने शोध कर मेरी वैज्ञानिकता का सम्मान करते हुए अपने रोगियों को लाभान्वित किया है, जैव घड़ी, उपवास, दही आदि पर शोध कर नोबेल सम्मान अर्जित किए हैं. हल्दी, नीम आदि का पेटेन्ट भी करवाया है, परन्तु वत्स ! मेरे ज्ञान के अतुलनीय लाभों से मेरी ही जन्म और कर्मभूमि के लोग वंचित होकर लम्बे समय तक रोगों की असह्य वेदना को सहन करते रहते हैं, यह मुझसे देखा नहीं जाता है. दुर्भाग्य का विषय है कि मैं अपने ही देश में घोर उपेक्षा की शिकार हो रही हूँ, मुझे कोई पूछता ही नहीं है. मोदीजी के आने से प्रसन्न थी परन्तु दस वर्षों में मेरी दशा में अपेक्षित सुधार नहीं हुआ है. क्या यह मेरी उदासी और रुदन का पर्याप्त कारण नहीं है.

विक्रम- माता ! कारण तो पर्याप्त है, परन्तु जुलाई 2024 से क्रान्ति होने वाली है, आयुर्वेदिक दिनचर्या, आयुर्वेद के अनेक श्लोकों, वैदिक औषधिविहीन, प्रभावशाली और वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धतियों को देश के सभी मेडिकल कॉलेजों में पढ़ाया जाएगा. दिनचर्या को स्कूलों में पढ़ाया जाएगा. आश्वासन चिकित्सा, स्पर्श चिकित्सा, मन्त्र चिकित्सा, प्राणायाम चिकित्सा, ध्यान चिकित्सा, आस्था चिकित्सा, सकारात्मक सोच की चिकित्सा, संकल्प चिकित्सा, सूर्यकिरण चिकित्सा, वायु [वन स्नान] चिकित्सा, जल चिकित्सा, आकाश [उपवास] चिकित्सा आदि पर भारत के मेडिकल कॉलेजों में भी विदेशों की तरह शोध होंगे. सम्भव है कि दर्जनों नोबेल सम्मान भी हमें मिल जाएं.

देवी [माता ने टोकते हुए]- वत्स ! क्या सचमुच में ऐसा होगा?

विक्रम- हां, माता ! आप बिल्कुल निश्चिन्त रहें, अवश्य ही होगा. क्योंकि मोदीजी हैं तो मुमकिन है.

— डॉ. मनोहर भण्डारी