सामाजिक

समाज में परिवार की क्या भूमिका है?

         समाज में परिवार की भूमिका पर कुछ भी कहने से पूर्व मेरा विचार है कि हम सब परिवार की एक इकाई हैं और परिवार समाज की एक इकाई ही है। हम हैं तो परिवार है, परिवार है तो समाज है। परिवार या समाज से अलग होकर हम अपने अस्तित्व के साथ ही परिवार, समाज से होते हुए राष्ट्र या संसार की परिकल्पना भी असंभव है।

        अब समाज में परिवार की भूमिका के बारे में यदि कहें तो समाज में परिवार की महत्वपूर्ण भूमिका है। बिना परिवार के समाज का उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता है। क्योंकि परिवार परिवार जुड़ कर सामूहिक सहयोग और योगदान के समाज का अस्तित्व नगण्य है। पारिवारिक आयोजनों, सामाजिक, सैद्धांतिक परंपराओं, रीति रिवाजों की बदौलत ही एक सफल समाज निर्मित हुआ है। समाज में बहुत से ऐसे काम हैं जिसे एक अकेला व्यक्ति कर ही नहीं सकता। किसी  गरीब की बेटी का विवाह, किसी निर्धन का इलाज, किसी व्यक्ति, परिवार या समूह की विषम परिस्थिति में अनेक लोगों द्वारा सहयोग, आपात काल में संबल देना, सामूहिक अनुष्ठान, यज्ञ, भंडारा, कुंए, तालाब, मंदिर निर्माण, सामाजिक हितों के मद्देनजर शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजी रोजगार संबंधी विकल्प, वृद्धजनों की सेवा, स्वास्थ्य और जीवन यापन संबंधी विकल्प उपलब्ध कराना बिना परिवार के योगदान के संभव नहीं है।

     इसमें शायद ही किसी को संदेह हो कि आदिकाल से हम सबको यह सीख पीढ़ी दर पीढ़ी प्राप्त हो रही है।जिसकी राह पर चलते हुए हम एक जिम्मेदार इकाई के रूप में अपनी सामाजिक जिम्मेदारी का निर्वहन करने की दिशा में यथा संभव योगदान देकर सामाजिक, व्यवहारिक रूप से आत्मीय और मानवीय संवेदनाओं का उदाहरण देने, बनने का प्रयास कर रहे हैं।

      हमारे छोटे छोटे योगदान का असर इतना होता है कि असंभव सा लगने वाला काम बहुत आसानी से हो जाता है।जिसका परिणाम यह होता है कि किसी, व्यक्ति, परिवार या समाज की खुशियां बढ़ जाती हैं।

  ऐसे में यह कहना अतिशयोक्ति नहीं है कि परिवार की समाज में स्थाई भूमिका है,जिसे नकारना सिर्फ स्वार्थी भाव और स्वयंभू बनने का दुस्साहस मात्र है। 

*सुधीर श्रीवास्तव

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