ग़ज़ल
नये घर को सजाना चाहता है।
याद पुरखों की मिटाना चाहता है।
प्यार का दीपक जो डेहरी पर रखा,
उसको आखिर क्यों बुझाना चाहता है।
दोस्ती में लग रहा क्या रखा है आजकल,
दुश्मनी फिर-फिर निभाना चाहता है।
प्यार में दुश्वारियां आई बहुत जब भी,
गुल नहीं बस खार का मौसम सुहाना चाहता है।
आंसुओ का ये समंदर डूबने को था बहुत,
याद का दरिया सलीके से बहाना चाहता है।
एक वीरानापन जो देता रात – दिन,
उससे याराना जताना चाहता है।
— वाई. वेद प्रकाश