लघुकथा

लघुकथा- जिंदगी या मोबाइल

डॉ.सुमित्रा जी मरीजों को रोज़ मरते देखती थीं. मेडिकल कॉलेज के एचडीओ यूनिट की इंचार्ज थीं वो. पर, आज वह 14 साल का बच्चा मरने से पहले उन्हें बुरी तरह झकझोर गया था. वो सोचने को मजबूर थीं कि दुनिया कहाँ जा रही है? जब उसे अस्पताल में लाया गया था तो वह बोल रहा था, सब कुछ बता रहा था शायद इसी से उसके माता-पिता और साथ आये परिजन उम्मीद में थे कि डॉक्टर जो कि भगवान का दूसरा रूप माने जाते हैं वह उसे बचा ही देंगे. भले ही उसने दो-दो जहर की शीशी गटागट पी ली है.
“छोटे बच्चे, तुम्हें जहर कहाँ से मिला और पीने की जरूरत क्यों पड़ी? डॉ. साहिबा उसका मासूम सुंदर चेहरा देखकर पूछ बैठीं . रिपोर्टों में साफ-साफ मृत्यु की ओर जाता बालक खुद ही बताने लगा- “बाबूजी के पास हमारे लिये पैसे नहीं रहते हैं तो जी के ई का करनो?
डॉ. ने अवाक् हो प्रश्नवाचक मुद्रा से पिता की ओर देखा.
पिता कातर स्वर में बोले- “हर इच्छा पूरी करता हूंँ इसकी डॉक्टर साहब. मोबाइल की लत छुड़वाने की कोशिश में सिम रिचार्ज हेतु पैसे नहीं दिए तो इसने चूहा मारने की दवा की दो शीशी खोलकर पी ली और दोनों शीशी मेरे सामने फेंक कर बोला- “लो, झंझट ही खत्म. अब आपको रिचार्ज ना करना पड़ेगा.”
पर मुँह से आती बदबू और झाग गिरती देख हम दौड़ के यहाँ ले आए. साहब, हमें क्या पता था ये ऐसा कदम उठा लेगा.”
डॉक्टर सुमित्रा ने फटाफट सारी जाँच खुद करवाईं अति शीघ्र. बालक से उन्होंने प्यार से कहा- “बेटा जिंदगी या मोबाइल, तुम्हें दोनों में से किसी एक को ही चुनना होगा.”
वह अपनी चमकीली आंखें उनकी निस्तेज आँखों में डालकर बोला- ” जाते तो मरनो ज्यादा अच्छो.”
जहर ज्यादा ही फैल चुका था. कोई भी जहर निवारक दवा असर नहीं कर रही थी. उसने कुछ फिर बोलने के लिए मुँह खोला. ढेर सारा झाग.
डॉक्टर सुमित्रा ने उसे चुप रहने का इशारा किया. बालक ने अपनी नज़रें डॉक्टर के चेहरे पर इस आशा से टिका दीं कि वह कुछ देर में उसे बोलने की अनुमति देंगी तो वह अपना मोबाइल प्रेम अभिव्यक्त कर पाएगा. लेकिन तभी उसकी साँस उखड़ने लगी. हालांकि कार्य में लगे डॉक्टरों की सारी टीम को मालूम था कि सीपीआर काम नहीं करेगा फिर भी कुछ समझ में ना आया तो उन्होंने जल्दी-जल्दी सीपीआर देना ही शुरू कर दिया. पर नहीं, दो मिनट बाद ही अब सब कुछ खत्म हो चुका था. सामने था तो वह मृत बालक, उसका बिना रिचार्ज किया मृतप्राय मोबाइल, दहाड़े मार कर रोता पिता, बेहोश हो चुकी माँ और किंकर्तव्य विमूढ़ डॉक्टरों की टीम.

— बृजबाला दौलतानी