कविता

आषाढ़

आए हो आषाढ़, साथ में लाओ पानी।
देख रहे हैं राह, छोड़ दो अब मनमानी।।
लालच देकर रोज, कहाँ नीरद उड़ जाते।
दिखते श्यामल मेघ, धरा पर ना बरसाते।।

गड़गड़ की आवाज, हृदय उल्लास जगाते।
बादल का सुन शोर, सभी हैं आस लगाते।।
गिरे जहाँ तो हर्ष, नहीं तो बढ़े उदासी।
बेचारी ये झील, देख लो बैठी प्यासी।।

धरती है लाचार, खण्ड वर्षा है ऐसी।
कहीं फसल भरपूर, कहीं पर बंजर जैसी।।
बरसाओ जल धार, रूठना अब तो छोड़ो।
बाँटो अपना प्रेम, सभी से नाता जोड़ो।।

मानव जैसा रूप, नहीं बिल्कुल अपनाओ।
नहीं बदलना रंग, सही पहचान दिखाओ।।
जोड़े हाथ किसान, कहे तुम नीर गिराओ।
ओ राजा आषाढ़, जरा हरियाली लाओ।।

— प्रिया देवांगन “प्रियू”

प्रिया देवांगन "प्रियू"

पंडरिया जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़ [email protected]