कविता

मुझे शिकायत है


वैसे तो ये कोई नई बात नहीं है
हम सबको बहुत सारी शिकायतें हैं
अपने आप से, परिवार से, समाज से
शासन, प्रशासन, प्राकृतिक व्यवस्था से
यहां तक की भगवान से भी।
होना भी चाहिए, क्योंकि ये जरुरी है
मानव विशेष की अपनी मजबूरी भी है।
पर शिकायतों के साथ ये भी तो जरूरी है,
हमें खुद में भी झांकने, समझने की जरूरत है
जितनी शिकायतें आपको हैं औरों से है,
उसमें आप कितना पाक साफ हैं
अथवा उसमें आपका कितना योगदान है।
आप औरों से शिकायतों पर
ध्यान देते और सोच विचार करते हैं,
शायद खुद को बड़ा पाक साफ समझते हैं
या शिकायतों का ठेका सिर्फ आपके पास है,
और आप ही सबसे ज्यादा समझदार हैं।
जो सिर्फ आपको औरों से शिकायतों की चिंता है
औरों से ही सारी शिकायतें हैं,
अपने में झांकने तक की आपको फुर्सत नहीं है
सिर्फ शिकायतों का भंडार लिए
पकी सुबह से शाम और रात होती है,
पर आपके शिकायतों का बोझ
तनिक भी हल्की नहीं होती है।
ऐसा इसलिए भी होता है
कि आपके मन में “मुझे शिकायत है” का
अतिक्रमण बड़ा भारी है,
मानिए न मानिए ये लाइलाज बीमारी है
मेरी सलाह मानकर संभल जाइए! जनाब
ये आप पर ही पड़ने वाली भारी है,
शिकायतों की नहीं किसी से यारी है।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921