ठान लिया है उसने।
“मुरझाये-से क्यों हो गुलाब के पौधे?”
चमेली के पौधे ने सहज ही पुछा।
” देखो न मेरी अधखिली कलियाँ भी तोड़ देते हैं ये लोग। डाली से विलग होते कली को कितनी पीड़ा वेदना होती है ये संवेदनाहीन मानव क्या जाने?”
” कन्या भ्रूण हत्या करते भी तो नहीं पीडा होती पीड़ा इन्हें?”
” माँ, शक्ति स्वरूप माँ को खुद ही सशक्त होना होगा अपनी बिटिया के लिए।”
” आप क्यों नहीं चुभोते अपने कांटे? माँ को भी रणचंडी रूप धारण करना होगा।”
“हां, हां अपनी सुरक्षा हमें खुद ही करनी होगी।”
एक साथ सब पौधे बोल पडे।
” क्या करे? कैसे होगा?”
” एका हो हमारा। विरोध की आवाज बुलंद हो।”
” लेकिन हम तो कोमल, नाजुक,
छुई-मुई से.. “
” ठान लो तो असंभव कुछ नहीं। आत्मविश्वास से बढो आगे। आत्मबल से लक्ष्य भेद करो। जो चाहो, पाओगे। अपने आप को कमतर, कमजोर न समझो कभी।”
सुमंगला को फूलों की बातें रास आ गयी।
अपने पेट में पल रहे कन्या भ्रूण को प्यार से सहलाया उसने।
नहीं, वह गर्भपात नहीं करेगी, चाहे कुछ भी हो जाये।
ठान लिया है उसने।
मुस्कुरा रहा है गर्भ में पल रहा कन्या भ्रूण।