गीत/नवगीत

गीत

मौन रखूँगा अंतर्मन को, अब ये रस्म निभानी है
अधर रहेंगे मौन सदा, गीता की कसम उठानी है।

कुरुक्षेत्र जब मचा हुआ हो, अपने ही संबंधों में
अपने ही जब डूबा रहे हों, किश्ती नव छल-छंदों में
अब मेरी आँखों में आँसू, कर गंगा का पानी है
अधर रहेंगे मौन सदा, गीता की कसम उठानी है।1।

वाणी की बाणों से घायल, भीष्म पितामह मौन हुए
अर्जुन-केशव हुए पराजित, धर्मराज भी गौण हुए
हर युग की गीता में वर्णित, हर दम यही कहानी है
अधर रहेंगे मौन सदा, गीता की कसम उठानी है।2।

मौन बड़ा है ढाल समय का, वार सभी सह सकता है
समय बना हथियार अगर तो, मौन बहुत कह सकता है
जिह्वा हुई पराजित तब-तब, शांत हुई जब वाणी है
अधर रहेंगे मौन सदा, गीता की कसम उठानी है।3।

मेरी सहनशीलता को ना, कायरता से तुम तौलो
मौन अगर विस्फोट करेगा, तो क्या होगा रे बोलो?
मौन नहीं कमज़ोर जरा भी, अस्त्रों की रजधानी है
अधर रहेंगे मौन सदा, गीता की कसम उठानी है।4।

मेरे निश्छल मन ने प्रियवर, सदा नेक व्यवहार किया
सहे प्रहार जगत के अगिनत, नहीं पलट के वार किया
आज मौन को धारण कर फिर, अपनी लाज बचानी है
अधर रहेंगे मौन सदा, गीता की कसम उठानी है।5।

— शरद सुनेरी

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