हास्य व्यंग्य

चाँद के आँसू (व्यंग्य)

सृष्टि पर मानव जन्म के साथ ही चंद्रमा उसके लिए प्रेम और आकर्षण का विषय रहा है। दूर से निहारे जानेवाले इस आकाशीय पिंड को आखिर अपने कदमों तले रौंद दिया।ही यही मिथ प्रचलित है। ये बात दूसरी है कि चंद्रमा पर अमेरिका के कदम रखने तथाकथित प्रमाण आज भी संशय की दृष्टि से भी देखे गये। भारतीयों के लिए चाँद बड़ी धर्मनिरपेक्ष वस्तु रहा है। मुस्लिम के लिए ईद का हो जाता है तो सिक्खों के लिए कार्तिक-पूर्णिमा , बौद्धों के लिए बुद्ध-पूर्णिमा का और हिन्दुओं के लिए शरद-पूर्णिमा और करवाँ-चौथ का। चंद्रमा के प्रति भारतीय षुरुषों का प्रेम भले ही उन्हें आवारा सिद्ध करे किंतु विवाहिताएँ करवाँ-चौथ के दिन उसे पूजकर पतिव्रता की पदवी पर स्वयं का अभिषेक कर लेती हैं। राजनीति के नाम पर महिलाओ को ‘लाड़ली-बहना’ का लॉलीपॉप चटानेवाले और धर्मनिरपेक्षता का स्वांग करनेवाले नेताओं का ध्यान इस ओर नहीं गया। सब लौकिक जाति-पाँति और धर्म के झगड़े में उलझे रहे। यदि चाँद को अपनी पार्टी का चुनाव-चिह्न बनाते ना तो किसी धर्म का पक्षपात करने के पाप से बच जाते और महिलाओं के वोट बटोर जाते।

चंद्र से हमारे प्रेम की गहराई को हम इस तरह भी समझ सकते हैं। हमारे तीनों प्रधान आराध्य राम, कृष्ण और शिव जी को हमने किसी ग्रह से नहीं जोड़ा। लेकिन रामचंद्र, कृष्णचंद्र और चंद्रशेखर, चंद्रमौलि बनाकर बुध-मंगल-बृहस्पति जैसे बड़े ग्रहों को इस उपग्रह ‘चंद्र’ ने बौना कर दिया। यहाँ तक कि शक्ति का अवतार ‘चंद्रघंटा’ देवी भी पूजनीय हैं।

भारत वर्ष में इस चंद्रमा के साथ एक बड़ी विडंबना यह रही कि बचपन तक ‘मामा’ के रिश्ते में बँधानेवाला सोलहवें वर्ष में प्रवेश करते ही ‘मेहबूबा’ बन जाता है। एकदम पुल्लिंग से स्त्रीलिंग में रूपांतरण!! व्याकरण का आश्चर्यजनक पहलू!! शैशव में “चंदामामा दूर के’ गानेवाला ‘लल्ला’ मूँछ की कोंपलें फूटते ही गुनगुनाता है और लड़कियों को घूर कर कामना करने लगता है-‘चाँद-सी मेहबूबा हो मेरी कब ऐसा मैंने सोचा था।’ और उस चाँद को शादी के बाद बाँहों में समेटकर कर गाता है-‘चौदहवीं का चाँद हो।’ सच मानिए चंद्रमा इससे अच्छा सामाजिकरण किसी धरा’धाम पर नहीं हुआ। “इट्स हेपन ओखली इन इंडिया।”

हमारे लिए चाँद चूमने की चीज़ भी रहा। हमने भले ही कुछ वर्षों पहले चाँद पर ‘मंगल-पताका’ लहरायी लेकिन प्रेयसियों और पत्नी के मुखड़े को चाँद बनाकर हमेशा हमने चूमा। इस तरह चाँद को छूने इच्छा हर भारतीय आत्मा इसी मनुष्य देह में पूरी कर लेती है। नारी जाति भी करवाँ-चौथ के चाँद पर अपना अधिकार सिद्ध कर चलनी में से निहारने के बहाने उसे आँखों से चूम लेती हैं। इस चूमने का हिसाब बराबर!

आज करवाँ-चौथ के चाँद की पूजा करने पत्नी के साथ छत पर गया। तब चाँद को मैंने भी ध्यान से देखा। कुछ रुआँसा -सा लगा। ऐसा लगा मानो व्रतधारी सुहागिनों को दूर आसमान से देखकर कह रहा हो कि तुम कितना ही पुरुष जाति के लिए मेरा पूजन कर लो, शक्तिस्वरूपा नारी की नवरात्रि वाली आराधना कर लो। फिर देश में कन्या भ्रूण हत्या होती रहेगी! बालिकाओं-किशोरियों के बलात्कार होते रहेंगे! द्रौपदी चीरहरण होता रहेगा!! निर्भया -कलकत्ता जैसे कांड भी होते रहेंगे!!!!।तभी आसमान से एक बूँद गिरी। पत्नी ने कहा चंद्रदेव आपकी लंबी उम्र के आशीर्वाद के रूप में ओस बरसा रहे हैं। मैंने कहा – नहीं!ये ओस नहीं चाँद के आँसू हैं।

— शरद सुनेरी

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