संस्मरण

मेरा कमरा मेरा जीवन

कुछ चीजें ऐसी होती हैं, जिनसे हमें एक अलग तरह का लगाव ,प्यार या यूं कहें इसके करीब होने से सुकून होता है। फिर चाहे वह आपकी पसंदीदा घड़ी हो, फोटो हो, चश्मा हो, या आपका कमरा मेरा ये कमरा तो मेरी यादों की किताब सा है। यहीं बैठकर पढ़ाई पूरी की ,नौकरी मिली, जिसकी दिक्कतों भरी ट्रेनिंग इसी कमरे ने पूरी कराई कह सकते हैं, “मेरे हौसलों की उड़ान दी मुझे” परवाज दी और उड़ते उड़ते राष्ट्रपति पुरस्कार तक पहुंचा दिया अभी मेरे हौसलों की उड़ान , बाक़ी सी है मेरे इस कमरे में मेरी जान बाक़ी सी है।
कहीं भी होकर आ जाऊं सुकून तो मुझे आकर यही मिलता है, यह वही खिड़कियां और दरवाज़े हैं जिनके पीछे चार्ट पर नोटिस लिख लिख कर चिपकती थी। ताकि काम करते-करते भी दोहराती रहूं। पढ़ती रहूं, छोटे बच्चों को पालना और पढ़ना दोनों एक साथ कैसे किया यह कमरा ही तो गवाह है उसका। कभी कुर्सी इमेज पर कभी बेड पर तो कभी ज़मीन पर कहां-कहां बैठकर नहीं पढ़ा यह सब मेरे साथ-साथ थे। मेरे हर सफर में मेरे हर दुख दर्द में। टेबल पर रखी हुई यह घड़ी हमेशा मुझे सही समय पर स्कूल पहुंचती। 5 10 मिनट रोज़ मुझसे तेज़ भगा करती। मुझे अपने साथ दौड़ाती। सबसे ज़्यादा सुकून अपनी टेबल चेयर पर बैठकर सुबह शाम की चाय के साथ में न्यूज़पेपर की सुर्खियां। कभी अगर यह रह जाए तो कुछ अधूरा सा लगता है ।
मेरी बेड ने मुझे बड़ा संभाला सहारा दिया। जब कभी हिम्मत टूटती पढ़ाई, घर, बच्चा, नौकरी, ससुराल पति के हजार बातें, ना संभाल पाने पर यह तकिया ही तो मेरे आंसू पोंछ देता कितनीअपनी सी थी ये सारी चीजें ।कभी-कभी सोचती हूं, “नया घर ले लूं पर इस कमरे को साथ ले जा पाऊंगी क्या”? 15 सालों से इस कमरे के साथ जुड़ी हूं सुकून की नींद मुझे और कहीं मिल पाएगी क्या? शायद नहीं लोग नहीं समझते हर बार कहते हैं। सीपुराना हो गया है घर” पर मुझे यह पुराना सा कमरा सबसे ज़्यादा अपना लगता है। मेरा आधा जीवन इसी में बीता है। दीवार पर लगे फोटो फ्रेम को एक टक देखकर बातें करना जब कोई नई उपलब्धि मिली उसे दीवार पर एक और फोटो लगा देना। और धीरे से मुस्कुराना आज इस आसिया फारूकी को तो दुनिया जानती है। पर यह कमरा उस आसिया को जानता है। जब वह मेहनत करके आगे बढ़ाना सीख रही थी। नभ में उड़ना सीख रही थी। बड़ी कहानी है लिखने और सुनने में ज्यादा वक्त चाहिए।
बात अभी इस कमरे की हो रही है। यह करीब ही नहीं बहुत ज़्यादा क़रीब है मेरे, “वह पहली सैलरी की मिठाई इसी कमरे में पैक की” वह “नेशनल अवार्ड की बधाई” इसी कमरे में आकर सबने दी वह मेरी “जिंदगी के दर्द” इसी कमरे में सारे बीते “द्वंद ,संघर्ष, कशमकश” यही गुज़रे मेरी सारी नमाज़े यही अदा होती रही। और एक खास बात “शाम के वक्त लाइट जलने के बाद यह कैमरा और भी ज्यादा दिलकश लगने लगता है”। और यह मेरी किताबों की अलमारी तो मुझे हमेशा “अपने पास बुलाती रहती है”। मुझे इन किताबों को पढ़कर सुकून सा मिलता है। यह कमरा इसका कोना-कोना मेरा जीवन है। यहां मेरी सारी भावनाएं रखी है। और यह मेरी सारी परेशानियां भी दूर करता है। यही कमरा है जिसमें चैन से मैं जी रही हूं। मेरी तन्हाई का साथी। मेरा अपना, “तेरे बगैर यह दुनिया बेरंग सी लगेगी मुझे” कहीं भी रहूं लौटकर यही आ जाऊंगी मैं” अब सोचती हूं। कि “जिंदगी का आखिरी पल भी इसी कमरे में गुजरे” हां बस वह मेरा पसंदीदा शख्स मेरे पास होना चाहिए उसके हाथों में मेरा हाथ होना चाहिए।

— आसिया फारूकी

*आसिया फ़ारूक़ी

राज्य पुरस्कार प्राप्त शिक्षिका, प्रधानाध्यापिका, पी एस अस्ती, फतेहपुर उ.प्र

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