ज़ख्म की तासीर
ज़िद, घमंड ,जुबान और अंहकार को,
नज़रों से गिरा मानकर,
एक महफ़िल में आनेवाले लोगों को,
कुछ समझाने की कोशिश करती है।
घर टूटने में,
इन मुश्किलों की जरूरत दिखाई देती है।
यही खुशियां बदसूरत करके अपने दिल को,
तहस-नहस कर देता है।
आफताब की जरूरत महसूस ,
कराने में मदद करता है।
तमाम हसरतें पूरी करने में,
इन अंगारों को दूर कर रखना चाहिए।
हमेशा साथ-साथ चलने में,
इसकी परछाइयां नहीं पड़नी चाहिए।
कसमकश है कि सब लोग,
इस इम्तहान में बदलाव चाहते हैं।
सही और ग़लत काम में,
इसकी वजह जानना चाहते हैं।
इन गर्म तासीर वाले शखिसियत को,
नज़रों से दूर रखकर ही,
खुशियां और सुकून पा सकते हैं।
आम तौर पर खरा उतरने में,
इसकी सोहबत में रहना पसंद नहीं करते हैं।
हमें आगे बढ़ने में,
इन तमाम बातों को गौर से देखने की जरूरत है।
बदतमीज दिल में,
इसकी वजूद खत्म करने की,
बढ़ जाती अहमियत है।
हमें आनन्द और प्रसन्नता मिले,
इसकी वजह जानना जरूरी है।
नज़रों से देखा जाए तो,
बेवजह बहसबाजी नहीं होनी चाहिए,
यही सफलता पाने के लिए,
बन चुकी मजबूरी है।
— डॉ. अशोक, पटना