बहादुर
दादाजी बताया करते थे कि
जब भी राजा साहब को करना होता मंगल,
शिकार के लिए चले जाते थे जंगल,
खूंखार जानवर को मार गिराया गया,
सारे साथियों को एक जगह बुलाया गया,
राजा ने पूछा बताओ इसे किसने मारा,
हरखू बोला मैंने इसे मौत के घाट उतारा,
राजा गुस्साया,
आदेश फरमाया,
हरखू की आरती उतारो,
चार तगड़े डंडे मारो,
डंडे खाकर वह होश में आया,
राजाजी ने शेर मारा सबको बताया,
बहादुरी की एक और गाथा सुनिए,
उसके बाद बहादुर आप चुनिए,
मुखिया था बूढ़ा अस्सी साल का,
जो घिरे होते थे दस दस लठैतों द्वारा,
जयकारा होते गांजे के कश ले बकैतों द्वारा,
उसके विरुद्ध कोई कुछ कर नहीं सकता था,
अनुमति बिना कहीं पांव धर नहीं सकता था,
लूट खसोट से बना था गरीबों का सहारा,
लठैत टूट पड़ते थे पाकर इशारा,
बहुत लोग ऐसे बहादुरी वाले हुए हैं,
और इसी तरह प्रसिद्धि के आसमान छुए हैं।
— राजेन्द्र लाहिरी