कविता

प्रेम का प्रेमिल-पयाम

पतंगकी उड़ान देख,
पतंग-सी उड़ने की चाह,
कैसे उड़ सके मगर वह,
मिल न सके कोई राह!
बेटा होती तो कोई बाधा नहीं,
उसकी तो कोई गाथा नहीं!
उसे तो कटना-लुटना ही है,
उसके गीत कोई गाता नहीं!
वह अपनी बाधा खुद दूर करेगी,
जब चाहे पतंग-सी उड़ेगी,
गाएगी दुनिया उसके गीत,
अपनी राह बना इच्छा से मुड़ेगी।
पतंग-सी उड़ान होगी,
नहीं कोई थकान होगी,
जुड़ी रहेगी अपनी जड़ों से,
प्रेम का प्रेमिल-पयाम होगी।
बन गई चाह ही खुद राह,
अब न होगी कोई आह!
उसका भी अपना अस्तित्व है,
दुनिया कहने लगी वाह-वाह!

— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

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