क्यों भूलें बीता कल?
पुरानी बातें भूलने को कहते हो,
अपने दिखाये झूले में झूलने को कहते हो,
खुद भूल नहीं पा रहे हो,
हमें सपने दिखा रहे हो,
परंपरा कह अत्याचारों का
समर्थन कर रहे हो,
इस जागरूक विज्ञानवादी समय में भी
आग में पांव धर रहे हो,
तुम्हारी समृद्ध परंपरा
हमारे अज्ञानता पर आधारित था,
मुख से,भय से,जोर जुल्म से
आपका कुकर्म प्रचारित था,
व्यवस्था इस तरह बना चुके थे आप
विरोध की मानसिकता होने के बाद भी
मनमसोड़ चुप रहना पड़ता था,
आपके पिलाये नशे में पड़
धुत रहना पड़ता था,
हमारे पुरखे के किसी को और न हमें
तरजीह न दी आपने,
विषैले सर्प के डसने पर भी
हम सोचते थे डसा है विषहीन सांप ने,
अरे सर्प का विष उतर सकता है
पर आपका काटा जहर कैसे उतरेगा,
चूहों पर भरोसा क्यों करें कि नहीं कुतरेगा,
भाई को भाई से बांटने का गुर
आपका सदा से ही निराला है,
छल,कपट,जाति जैसे विषैले बिच्छू
अपने अंग अंग में आपने पाला है,
बीती बातें भूलकर
अपना भविष्य हम नहीं बिगाड़ने वाले,
हम बन चुके हैं मदमस्त गज चिंघाड़ने वाले।
— राजेन्द्र लाहिरी