बसंत मुरझाया
रिश्तों में हैं पतझड़ ऋतु आया,
खिलता था कभी, बसंत मुरझाया।।
फूलों में मनभावन खुशबू नहीं हैं,
तितलियों में चंचलता नहीं हैं।।
तरो ताजगी नहीं मन लुभाती,
रिमझिम फुहारें नहीं हर्षाती।।
मौसम ये कैसा रूखा सूखा?
रूठी -रूठी क्यों हैं प्यार की बरखा।।