कविता

प्रकृति

हे प्रकृति!
कैसे वर्णन करुं तुम्हारे
विविध रुपों का,
आलबंन कभी उद्दीपन
आतुर कभी नव सृजन,
कोमलता ममत्व की
बनती सुखदायी,
विराट रुप विकराल
बन जाता दुःखदायी,
जीवन प्रदायिनी,
जीवन का तुम सार,
रौद्र, भयानक और विकराल
प्रचंड रुप तुम्हारे अपार,
हमको अपनी शरण में ले लो
क्यूँ देती जीवन को थाम
ममत्व रुप अपना बनाये रखो
तुम ही तो हो ये चारों धाम

— डॉ. सुरेश जांगडा

डॉ. सुरेश जांगडा

पिता का नाम : श्री औमप्रकाश सम्पर्क : गांव व डाकखाना-चुलियाणा, जिला-रोहतक (हरियाणा) कवि व लेखक ग्रामीण पृष्ठभूमि से जुडे रहकर बीस साल तक "भारतीय वायुसेना" में राष्ट्रसेवा का कर्त्तव्य निभाते हुए सनातन आर्य भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति-प्रेमी कवि हृदय व्यक्ति हैं। आपने वायुसेना से सेवानिवृति के पश्चात छ: साल तक खाद्य एवं पूर्ति विभाग में उपनिरीक्षक के पद पर कार्य किया। आपने हिन्दी विषय से स्नातकोत्तर, एम. फिल, पीएच.डी की उपाधियां अर्जित की हैं। इसके साथ आपने हिन्दी विषय में यूजीसी नेट, एचटेट व बीएड की परीक्षाएं भी उत्तीर्ण की हैं। वर्तमान में आप राजकीय महाविद्यालय सांपला रोहतक में हिन्दी के असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नियुक्त हैं। लेखक के विभिन्न राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय शोध-जर्नलों में अब तक 40 शोध-पत्र प्रकाशित हो चुके हैं। लेखक की अब तक पांच पुस्तकें पुस्तकें प्यार का पथ अटपटो, हिन्दी साहित्य की दशा और दिशा, हिन्दी साहित्य की विकास यात्रा के विविध आयाम, चिन्तन, कोरोना काल अवसर या अभिशाप व भारतीय साहित्य में गीतोपदेश का स्थान प्रकाशित हो चुकी हैं। हिन्दी व हरियाणवीं में कविताएं लिखते हैं।

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