दोहा
किरण
नवल किरण की क्या कहें, अद्भुत होती बात।
होता उसके भाग्य में, सुखदा जिसकी रात।।
सूर्य किरण से मिल रहा, धरती को उजियार।
इसके बिन ऐसा लगे, सूना जग संसार।।
आशाओं के दीप ले, बढ़ते हम अरु आप।
दुविधा हरती इक किरण, मिट जाता अभिशाप।।
एक किरण देती हमें, मन को यह विश्वास।
मत निराश होना कभी, पूरी होगी आस।।
माघ पूर्णिमा
माघ पूर्णिमा आज है, हर्षित हैं सब लोग।
डुबकी संगम में लगा, मिट जायेंगे रोग।।
महाकुंभ सौभाग्य से, पहुँच रहे हैं लोग।
माँ गंगा की है कृपा,या मानो संयोग।।
उमड़ा जन सैलाब है, संगम तट पर आज।
जैसे भूले लोग हैं, अपने बाकी काज।।
संगम तट पर स्नान कर, धन्य हो रहे लोग।
शेष नहीं अब रह गया, जैसे कोई वियोग।।
चहुँ दिश ही हर घाट पर, लगती भारी भीड़।
इच्छा सबकी हो रही, यहीं बना लूँ नीड़।।
स्नान ध्यान के साथ ही, करें दान अरु पुण्य।
आज काम केवल यही, सब कहते हैं मुख्य।।
माता- पिता
मातु-पिता का हो रहा, अब कितना सम्मान।
आप सभी भी जानते, जटिल नहीं विज्ञान।।
करते हैं जो वंदना, मात-पिता का नित्य।
उसके जीवन का सदा, चमक रहा आदित्य।।
हम तो अब करने लगे, मातु-पिता उपहास।
इससे ज्यादा और क्या, कर सकते संत्रास।।
रोते हैं माँ- बाप अब, बच्चों से मजबूर।
साथ-साथ रहते मगर, होते जैसे दूर।।
मातु पिता में अब कहाँ, पहले वाली बात।
कुंठित करने में लगे, भूले निज सौगात।।
बदल गया है अब समय, नहीं किसी का दोष।
नाहक हम हैरान हो, दिखा रहे हैं रोष।।
भगवत
भगवत गीता पाठ से, शाश्वत जीवन ज्ञान।
केशव की मिलती कृपा, सभी लीजिए जान।।
भगवत गीता से मिले, सबको इतना ज्ञान।
जीवन के विज्ञान का, हर मुश्किल समाधान।।१२ मात्रा
सनातनी पढ़कर गढ़े, अपना जीवन सार।
सदा सुधारें वे सभी, निज का नित व्यवहार।।
भगवत गीता में छिपा, मानव जीवन ज्ञान।
आसानी से हम सभी, पढ़कर लेते जान।।
भगवत गीता में नहीं, भेदभाव की बात।
सत्य सनातन धर्म का, शांत सौम्य मृदुगात।।
श्लोक
जीवन के निज श्लोक का, कितना हमको ज्ञान।
मद में होकर चूर हम, कहते खुद को विद्वान।।
मात- पिता देते हमें, नित-नित श्लोकी ज्ञान।
जीवन अनुभव जो किया, हमें मुफ्त दें दान।।
संस्कृत भाषा में लिखे, पढ़ते हम सब श्लोक।
जो पढ़ना नहिं जानते, मना रहे हैं शोक।।
भगवत गीता में लिखा, है संस्कृत में श्लोक।
हिंदी में भी सार है, पढ़ो, कौन है रोक।।
श्लोकों में सब है छिपा, दुनिया भर का ज्ञान।
कलयुग का सौभाग्य है, लिया सभी ने मान।।
उपहार
जीवन साथी का मिला, ईश कृपा से मान।
करना सबको चाहिए, आपस में सम्मान।।
संतानों को मानते, मातु – पिता उपहार।
फिर भी उनका घट रहा, चहुँदिश अब अधिकार।।
परिभाषा उपहार की, नहीं समझते लोग।
मान रहे जैसे इसे, महज एक संयोग।।
उपहारों के नाम पर, नित्य हो रहा खेल।
निहित स्वार्थ की आड़ में, गुपचुप होता मेल।।
मान और सम्मान से, बड़ा नहीं उपहार।
दोनों हाथों बाँटती, चुनी हुई सरकार।।
नारद
नारद जी को मिल रही, बड़ी चुनौती आज।
ठेल ठाल कर लोग बहु, करते उन जस काज।।
विचरण वीणा ले करें, जपें ईश का नाम।
मानस ब्रह्मा पुत्र का, चलते रहना काम।।
नारद बिन चलता नहीं, देव लोक का काम।
चलते फिरते बाँटते, समाचार दें नाम।।
नारद जी ने दिया था, विष्णु जी श्राप।
ज्ञान हुआ जब सत्य का, तब उनको संताप।।
समाचार की खान हैं, नारद ऋषि महान।
हैं धरा के प्रथम वो, पत्रकार लो जान।।
मन की शक्ति से विचरते, नारद मुनि महान।
घूम-घूम कर दे रहे, समाचार संज्ञान।।
मन में लड्डू फूटते, गले पड़े जयमाल।
समझ नहीं वे पा रहे, विष्णु ईश का जाल।।
मन कुंठित तब हो गया, देखा जल मुख आप।
क्रोधित नारद ने दिया, श्री विश्वम को शाप।।
धोखा
दो अक्षर के शब्द को, इतना हुआ गुरूर।
नहीं समझता किसी को, रहता मद में चूर।।
धोखों का तो बन रहा, रोज नया इतिहास।
मानव खोता जा रहा,जीवन का परिहास।।
धोखा देकर आजकल, बनते चतुर सुजान।
जैसे ईश्वर है नहीं, या वे हैं अंजान।।
धोखा देता घाव जो, वो बनता नासूर।
अपने भी रहने लगे, अब अपनों से दूर।।
धोखे से सीता हरी, रावण बड़ा महान।
अंत समय निज भूल का, उसे हुआ था ज्ञान।।
धोखा जिनके चित्त में, करता रहता वास।
उसका कितने लोग नित, करते हैं उपहास।।
जीवन
जीवन की है कामना, प्रभु जानें हैं आप।
रोग शोक से दूर कर, मेंटें सब संताप।
जीवन को मत मानिए, यारों कोई खेल।
कहते संत महंत हैं, मत कहना तुम रेल।।
तर्पण
सेवा अरु संकल्प का, होता है नित मान।
मन घमंड से दूर हो, इतना रखिए ध्यान।।
तर्पण करते जा रहे,अपना बुद्धि विवेक।
हमको ऐसा लग रहा, काम बचा है एक।।
होली का हुड़दंग
होली के हुड़दंग में, नाच रहे हैं लोग।
पीते दारू भंग भी, मान रहे संयोग।।
रंग अबीर-गुलाल का, होली है त्योहार।
सारी दुनिया को लगे, सुंदर है संसार।।
जाति-धर्म को भूलकर, गले लगाते लोग।
रंग -अबीर- गुलाल का, सुंदरतम उपयोग।।
बैर- भाव को भूलकर, करो खूब हुड़दंग।
अपनेपन के साथ ही, मलिए सबको रंग।।
मर्यादा का भी रखें, होली में सब ध्यान।
ज़हर आप मत घोलना, रखो रंग का मान।।
होली का संदेश है, मिलकर रहना आप।
निंदा नफ़रत दूर हो, और मिटे संताप।।
शिव शंकर
शिव शंकर को हम करें, बारंबार प्रणाम।
माँ गौरा संग में बढ़ी, जिनकी शक्ति ललाम।।
शिव जी से यमराज जी, करते हैं अनुरोध।
प्रभु मुझे भी दो करा, शिव बारात का बोध।।
सचमुच शिव भोले बड़े, आप सभी लो जान।
इनके पूजा पाठ का, सबसे सहज विधान।।
आज सुबह यमराज जी, आये शिव दरबार।
जलाभिषेक कर प्रभु से, माँगा वर उद्धार।।
शिव जी के दरबार में, लंबी लगी कतार।
सबके मन की भावना, निज का हो उद्धार।।
विविध
महाकुंभ हम जा रहे, लेकर माँ का नाम।
मन इतना विश्वास है, पूरे होंगे काम।।
साजन रहते दूर हैं, फिर भी लगते पास।
सजनी खातिर सजन ही, जीवन का विश्वास।।
सुधीर श्रीवास्तव