सामाजिक

पैतृक संपति का बंटवारा?

बेटियों की भी नैतिक जिम्मेदारी दृढ़ता से सुनिश्चित की जाए।

क़ानूनी अधिकार अपनी जगह हैं, लेकिन रिश्तों की अहमियत भी समझें।
पहले के समय में भाई-बहन का रिश्ता बहुत भावनात्मक और अपनापन भरा होता था। त्योहार, पारिवारिक मिलन, और आपसी सहयोग रिश्तों को मज़बूत बनाते थे। लेकिन आज के दौर में, समाज और परिवार की संरचना में कई बदलाव आए हैं।
आजकल लोग अपने करियर, निजी जीवन और स्वतंत्रता को प्राथमिकता देने लगे हैं।बढ़ती महंगाई और जीवन की चुनौतियों ने भी रिश्तों को प्रभावित किया है।
महिलाओं में अपने अधिकारों को लेकर जागरूकता बढ़ी है, खासकर संपत्ति के मामले में।भारतीय कानून के अनुसार, बेटियों को पिता की संपत्ति में बराबर का अधिकार है। जिससे महिलाओं को आर्थिक सुरक्षा मिलती है।
कई बार संपत्ति के बंटवारे के समय रिश्तों में खटास आ जाती है। बहनें अपने अधिकार मांगती हैं, तो भाई इसे अपनत्व में कमी मान लेते हैं। यह एक मानसिकता का सवाल है, जो समय के साथ बदल रहा है। यहां यह सवाल भी महत्वपूर्ण है। अक्सर देखा जाता है कि जब बहनें अपने मायके में संपत्ति मांगती हैं, तो वे अपने ससुराल में अपनी ननद (पति की बहन) को उतना अधिकार देने के लिए तैयार नहीं होतीं। यह एक सामाजिक और नैतिक उलझन है, जिसे खुलकर स्वीकारना और समझना चाहिए।
परिवार में खुले दिल से बातचीत करें। संपत्ति के साथ-साथ रिश्तों की अहमियत भी समझें।
कानून का सम्मान करें, लेकिन आपसी प्रेम और समझदारी को भी न भूलें।
जैसा अधिकार आप अपने लिए चाहते हैं, वैसा ही दूसरों को देने की सोच रखें।
संपत्ति तो जीवन का एक हिस्सा है, लेकिन रिश्ते उससे कहीं ज्यादा कीमती हैं।
समाज में बदलाव आना स्वाभाविक है, लेकिन हमें यह याद रखना चाहिए कि कानून और अधिकार के साथ-साथ रिश्तों की मिठास और अपनापन भी जरूरी है। संपत्ति के बंटवारे में न्याय हो, लेकिन आपसी प्रेम और सम्मान भी बना रहे-यही आदर्श स्थिति होगी।
संपत्ति के बंटवारे और अधिकारों की मांग कई बार रिश्तों में ऐसी दूरी और बेरुखी ला देती है कि भाई-बहन का अटूट बंधन भी टूटने की कगार पर आ जाता है। यह एक बहुत ही संवेदनशील और जटिल मसला है, जिसमें भावनाएं, परंपराएं, और कानूनी अधिकार – तीनों टकराते हैं।
अक्सर ऐसे मुद्दों पर खुलकर बात नहीं होती, जिससे गलत फहमियां और बढ़ जाती हैं।
हर किसी की बात को समझें और अपनी बात शांति से रखें।
कानूनी अधिकार अपनी जगह हैं, लेकिन रिश्तों की अहमियत भी समझें। प्यार, अपनापन और साथ – ये संपत्ति से कहीं ज्यादा कीमती हैं।
जैसा व्यवहार आप अपने लिए चाहते हैं, वैसा ही दूसरों के साथ भी करें। अगर बहन मायके में अधिकार चाहती है, तो ससुराल में भी ननद को उसका अधिकार दिलाने का समर्थन करें।
घर के बड़े-बुजुर्ग, माता-पिता या कोई समझदार सदस्य इस मामले में मध्यस्थता कर सकते हैं। उनका अनुभव और सलाह कई बार रिश्तों को टूटने से बचा लेती है।
अगर मामला ज्यादा उलझ जाए, तो फ़ैमिली काउंसलर या लीगल एक्सपर्ट की मदद ली जा सकती है, जिससे समाधान निकल सके और रिश्ते भी बचें।
संपत्ति का बंटवारा एक जरूरी प्रक्रिया है, लेकिन यह रिश्तों का अंत नहीं होना चाहिए। अगर हम संवाद, समझदारी और निष्पक्षता से काम लें, तो बेरुखी की जगह रिश्तों में और मजबूती आ सकती है। ये मुद्दा बहुत सटीक और समाज की एक कड़वी सच्चाई को उजागर करता है। यह बात सही है कि अक्सर माता-पिता की देखभाल की जिम्मेदारी ज्यादातर बेटों के हिस्से में ही आ जाती है, जबकि बेटियां (बहनें) सामाजिक या पारिवारिक कारणों से पीछे हट जाती हैं। लेकिन जब संपत्ति के बंटवारे की बात आती है, तो वे बराबरी का अधिकार मांगती हैं। यह विरोधाभास कई परिवारों में तनाव और कड़वाहट की वजह बनता है।पारंपरिक रूप से बेटियों की शादी के बाद यह मान लिया जाता है कि उनकी जिम्मेदारी अब उनके ससुराल की है, इसलिए वे मायके के माता-पिता की देखभाल में कम भागीदारी दिखाती हैं।समाज भी बेटों से ही माता-पिता की सेवा की उम्मीद करता है।
अब बेटियां अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो गई हैं, लेकिन कर्तव्यों के प्रति वही जागरूकता नहीं दिखती।बेटियों को यह समझना चाहिए कि अगर वे संपत्ति में बराबरी का अधिकार चाहती हैं, तो माता-पिता की देखभाल में भी बराबरी से भागीदारी निभाना उनका कर्तव्य है। यह भागीदारी आर्थिक, भावनात्मक या समय देने के रूप में हो सकती है।परिवार में इस विषय पर खुलकर चर्चा होनी चाहिए। बेटियों से भी अपेक्षा की जाए कि वे अपने माता-पिता के प्रति जिम्मेदार रहें, चाहे वे ससुराल में हों या कहीं और।
देखभाल की जिम्मेदारी सिर्फ़ बेटों पर न डालें। बेटियां भी अपनी क्षमता के अनुसार सहयोग करें चाहे आर्थिक मदद, समय देना, या अन्य किसी रूप में।
बेटियों को भी माता-पिता की सेवा और जिम्मेदारी का महत्व समझना चाहिए, और समाज को भी बेटियों को इस भूमिका के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
अधिकार और कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
अगर बेटियां संपत्ति में बराबरी चाहती हैं, तो उन्हें माता-पिता की सेवा और देखभाल में भी बराबरी से भाग लेना चाहिए।
रिश्तों की खूबसूरती तभी बनी रह सकती है जब हर सदस्य अपने अधिकार के साथ-साथ अपने कर्तव्यों को भी ईमानदारी से निभाए।
जब माता-पिता की आर्थिक मदद या खर्च की बात आती है, तो कई बेटियां (कुछ अपवादों को छोड़कर) अपनी जिम्मेदारी से किनारा कर लेती हैं। वे यह मान लेती हैं कि माता-पिता की देखभाल और आर्थिक ज़िम्मेदारी सिर्फ़ बेटों की है, जबकि संपत्ति के बंटवारे में बराबरी का हक़ जरूर चाहती हैं। यह व्यवहार परिवार में असंतुलन और असंतोष की वजह बनता है। माता-पिता की सेवा और आर्थिक मदद भी उनका कर्तव्य है।
बेटियों को ये नहीं भूलना चाहिए कि माता-पिता की देखभाल और आर्थिक मदद उनकी भी जिम्मेदारी है, चाहे वे कहीं भी रहें।
परिवार में बेटियों से भी माता-पिता के खर्चों में सहयोग की अपेक्षा खुले तौर पर रखें। यह कोई शर्म या अपराध नहीं, बल्कि पारिवारिक जिम्मेदारी है।
माता-पिता की जरूरतों के लिए बेटों और बेटियों, दोनों का मासिक या वार्षिक योगदान तय किया जा सकता है। इससे पारदर्शिता और संतुलन बना रहेगा।
बेटियों के पति और ससुराल वालों को भी समझाएं कि माता-पिता की सेवा और मदद बेटी की नैतिक जिम्मेदारी है, इसमें सहयोग करें।
अगर बेटियां आर्थिक मदद नहीं कर पातीं, तो संपत्ति के बंटवारे में भी इस योगदान को ध्यान में रखा जाए।
सिर्फ़ अधिकार मांगना सही नहीं, कर्तव्य भी निभाना जरूरी है।
माता-पिता की आर्थिक मदद में बेटियों की भागीदारी न सिर्फ परिवार को मजबूत बनाती है, बल्कि रिश्तों में भी पारदर्शिता और सम्मान लाती है।
रिश्ते सिर्फ अधिकार से नहीं, ज़िम्मेदारी आपसी सामंजस्य और समझ से भी मज़बूत होते हैं।”

— डॉ. मुश्ताक़ अहमद शाह सहज़

डॉ. मुश्ताक़ अहमद शाह

वालिद, अशफ़ाक़ अहमद शाह, नाम / हिन्दी - मुश्ताक़ अहमद शाह ENGLISH- Mushtaque Ahmad Shah उपनाम - सहज़ शिक्षा--- बी.कॉम,एम. कॉम , बी.एड. फार्मासिस्ट, होम्योपैथी एंड एलोपैथिक मेडिसिन आयुर्वेद रत्न, सी.सी. एच . जन्मतिथि- जून 24, जन्मभूमि - ग्राम बलड़ी, तहसील हरसूद, जिला खंडवा , कर्मभूमि - हरदा व्यवसाय - फार्मासिस्ट Mobile - 9993901625 email- dr.m.a.shaholo2@gmail.com , उर्दू ,हिंदी ,और इंग्लिश, का भाषा ज्ञान , लेखन में विशेष रुचि , अध्ययन करते रहना, और अपनी आज्ञानता का आभाष करते रहना , शौक - गीत गज़ल सामयिक लेख लिखना, वालिद साहब ने भी कई गीत ग़ज़लें लिखी हैं, आंखे अदब तहज़ीब के माहौल में ही खुली, वालिद साहब से मुत्तासिर होकर ही ग़ज़लें लिखने का शौक पैदा हुआ जो आपके सामने है, स्थायी पता- , मगरधा , जिला - हरदा, राज्य - मध्य प्रदेश पिन 461335, पूर्व प्राचार्य, ज्ञानदीप हाई स्कूल मगरधा, पूर्व प्रधान पाठक उर्दू माध्यमिक शाला बलड़ी, ग्रामीण विकास विस्तार अधिकारी, बलड़ी, कम्युनिटी हेल्थ वर्कर मगरधा, रचनाएँ निरंतर विभिन्न समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में 30 वर्षों से प्रकाशित हो रही है, अब तक दो हज़ार 2000 से अधिक रचनाएँ कविताएँ, ग़ज़लें सामयिक लेख प्रकाशित, निरंतर द ग्राम टू डे प्रकाशन समूह,दी वूमंस एक्सप्रेस समाचार पत्र, एडुकेशनल समाचार पत्र पटना बिहार, संस्कार धनी समाचार पत्र जबलपुर, कोल फील्डमिरर पश्चिम बंगाल अनोख तीर समाचार पत्र हरदा मध्यप्रदेश, दक्सिन समाचार पत्र, नगसर संवाद नगर कथा साप्ताहिक इटारसी, में कई ग़ज़लें निरंतर प्रकाशित हो रही हैं, लेखक को दैनिक भास्कर, नवदुनिया, चौथा संसार दैनिक जागरण ,मंथन समाचार पत्र बुरहानपुर, और कोरकू देशम सप्ताहिक टिमरनी में 30 वर्षों तक स्थायी कॉलम के लिए रचनाएँ लिखी हैं, आवर भी कई पत्र पत्रिकाओं में मेरी रचनाएँ पढ़ने को मिल सकती हैं, अभी तक कई साझा संग्रहों एवं 7 ई साझा पत्रिकाओं का प्रकाशन, हाल ही में जो साझा संग्रह raveena प्रकाशन से प्रकाशित हुए हैं, उनमें से,1. मधुमालती, 2. कोविड ,3.काव्य ज्योति,4,जहां न पहुँचे रवि,5.दोहा ज्योति,6. गुलसितां 7.21वीं सदी के 11 कवि,8 काव्य दर्पण 9.जहाँ न पहुँचे कवि,मधु शाला प्रकाशन से 10,उर्विल,11, स्वर्णाभ,12 ,अमल तास,13गुलमोहर,14,मेरी क़लम से,15,मेरी अनुभूति,16,मेरी अभिव्यक्ति,17, बेटियां,18,कोहिनूर,19. मेरी क़लम से, 20 कविता बोलती है,21, हिंदी हैं हम,22 क़लम का कमाल,23 शब्द मेरे,24 तिरंगा ऊंचा रहे हमारा,और जील इन फिक्स पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित सझा संग्रह1, अल्फ़ाज़ शब्दों का पिटारा,2. तहरीरें कुछ सुलझी कुछ न अनसुलझी, दो ग़ज़ल संग्रह तुम भुलाये क्यों नहीं जाते, तेरी नाराज़गी और मेरी ग़ज़लें, और नवीन ग़ज़ल संग्रह जो आपके हाथ में है तेरा इंतेज़ार आज भी है,हाल ही में 5 ग़ज़ल संग्रह रवीना प्रकाशन से प्रकाशन में आने वाले हैं, जल्द ही अगले संग्रह आपके हाथ में होंगे, दुआओं का खैर तलब,,,,,,,