कविता

लड़ना भी जरूरी है

हां लड़ाकू हूं,
लड़ते आया हूं अभी तक,
बिल्कुल नहीं हूं कमजोर क्योंकि,
प्रेम और अहिंसा का पाठ
पढ़ाया जाता है कमजोरों को,
किया जाता है प्रयास
उन्हें देने के लिए मेडल
सत्य और नैतिकता की,
जबकि जीत का निर्णय करता है
केवल और केवल ताक़त,
जिसके विरुद्ध नहीं करता कोई हिमाकत,
लड़ना अहम अंग है जिंदगी का,
जो लड़ने से कतराता है,
गायब हो जाते हैं पल भर में
उनकी सुख-सुविधा,
उनके हक अधिकार,
सबसे ताकतवर लड़ाई है विचारों की,
इस माटी के कण कण के हिस्सेदारों की,
बैठे बैठे कौन किसका हक़ खा रहा है,
ध्यान किसी का इस ओर नहीं जा रहा है,
भूखों को सुनाया जाता है धर्म की बातें,
भूलाकर उनके द्रवित मर्म की बातें,
जिस दिन कर गया घर,
दिमाग में भरा हुआ डर,
उस दिन से हो जाता है चेतना शून्य
बड़ा से बड़ा लड़ाका,
और बलवान डालने लगता है
उनके हिस्से पर डाके पे डाका,
तब जरूरी है लड़ाई,
करने स्व की भलाई,
सक्षम हो तो ताकत से
या फिर लड़ो विचारों की लड़ाई।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554

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