साहित्य की पुकार
साहित्य न बिकता है, न झुकता है,
वह तो भीतर की लौ में सुलगता है।
ना नाम के पीछे, ना दाम के लिए,
बस सत्य के संग वह चल पड़ता है।
जो शब्द बेचें, सम्मान खरीदें,
वो क्या जानें भावों की पीड़ा।
UPI की रसीद से जो गौरव पाएं,
उनकी लेखनी रहेगी रीता।
झूठे मंच, नकली तमगे,
भाषा को बना रहे हैं मज़ाक।
हिंदी का ये अपमान देखकर,
क्या अब भी रहेंगे हम चुपचाप?
अब उठो, बहिष्कार करो,
इस छद्म प्रतिष्ठा को नकारो।
साहित्य को साधना रहने दो,
इसे न बिकने दो, न हारो।
— डॉ. सत्यवान सौरभ