दोहा- कहें सुधीर कविराय
धार्मिक
मंगल को मंगल करो, पवनपुत्र हनुमान।
चाहे ज्ञानी संत हो, या कोई अज्ञान।।
दर पर भारी भीड़ है, हनुमत जी के आज।
रामभक्त रक्षा करें, शीष सजायें ताज।।
शनी देव हैरान हैं, देख पाक के रंग।
कुछ तो करना पड़ेगा, इस पापी के संग।।
जन्मदिन
लंबी तेरी उम्र हो, ऊँचा तेरा नाम।
हर बाधा को पार कर,लिखो नया आयाम।।
जीवन में खुशियां मिले, हर पल हर दिन रात।
सारी दुनिया ही करें, तेरे काम की बात।।
खुशियों की बरसात हो, हर पल, हर दिन रात। ईश्वर देवे आपको, इतनी सी सौगात।।
खुशियों की सौगात का, भरा रहे भंडार।
ईश्वर की इतनी कृपा, जाने जग संसार।।
जीवन साथी/वैवाहिक वर्षगांठ
मेरी भी शुभकामना, और संग में ज्ञान।
जीवन साथी को सदा, देते रहना मान।।
जीवन भर का साथ है, नहीं भूलना आप।
एक दूजे के नाम का, करते रहना जाप।।
जीवन का उत्कर्ष है, रिश्तों का ये सार।
जिसके बल पर चल रहा, रिश्तों का व्यवहार।।
जीवन साथी शब्द में, छिपा हुआ है सार।
इस रिश्ते की नींव में, खोज रहे हम तार।।
मान-मनौव्वल संग में, खूब करो छलछंद।
सीमा भीतर स्वयं को, रखना तुम पाबंद।।
एक दूजे का आजकल, रखते कितना ध्यान।
हमको लगता हमीं को, सबसे ज्यादा ज्ञान।।
मजदूर
मजदूरी वो कर रहा, करता नहीं गुनाह।
जीवन चलता यूं रहें, नहीं अधिक की चाह।।
दिन भर मजदूरी करे, फिर भी भरे न पेट।
उम्मीदें कब छोड़ता, ईश्वर देगा भेंट।।
बच्चों के अरमान भी, टूट रहे हैं नित्य।
इस जीवन का क्या भला, आखिर है औचित्य।।
जाड़ा, गर्मी एक सा, वारिश का हो वार।
इनकी खातिर नित्य ही, मजदूरी त्योहार।।
सबसे ज्यादा काम भी, करता है मजदूर।
और वही सबसे अधिक, होता है मजबूर।।
मन मसोस कर जा रहा, करने को जो काम।
पाक साफ मन से जपे, अपने प्रभु का नाम।।
दीन हीन मजदूर हैं, कहते हैं कुछ लोग।
जो घमंड में चूर हैं, मान रहे संयोग।।
आपरेशन सिंदूर
बिना युद्ध के देश ने, मार लिया मैदान।
दुश्मन की तो छोड़िए, दुनिया है हैरान।।
आभा में सिंदूर के, चुँधियाया है पाक।
घुटनों पर वो आ गया, ये सिंदूरी धाक।।
गीदड़ भभकी का उसे, ऐसा मिला जवाब।
घुटनों पर वो आ गया, ये सिंदूरी ख्वाब।।
गोली अब जो एक भी, आयी सीमा पार।
गोला लेकर जायेंगे, आतंकी के द्वार।।
मोदी जी ने कह दिया, नहीं चाहते युद्ध।
इसका मतलब ये नहीं, बनें रहेंगे बुद्ध।।
आतंकी बेचैन हैं, समझ न आए नीति।
रास उसे आई नहीं, आतंकिस्तानी रीति।।
हमने जड़ पर जब किया, था अपना प्रहार।
पता नहीं था थोक में, मिला मुफ्त उपहार।।
पहलगाम से हिल गया, था जब सारा देश।
मोदी जी ने पढ़ लिया, भारत का संदेश।।
सीने में जलती रही, मोदी जी के आग।
पर संयम छोड़ा नहीं, सुना न कोई राग।।
मोदी के ऐलान से, हुआ पाक में शोक।
किसमें इतना हौसला, मोदी पथ ले रोक।।
मोदी जी ने चल दिया, हिंदुस्तानी दाँव।
पाकिस्तानी कर रहे, जैसे कौआ काँव।।
गीदड़ भभकी दे रहे, बनकर कुत्ते शेर।
जिन्हें नहीं है कुछ पता, बनने वाले ढेर।।
पाक बड़ा नापाक है, दुनिया को है ज्ञात।
कुछ की आँखें बंद हैं, कुछ करते प्रतिघात।।
बिना युद्ध ही हो रहा, दुश्मन अपना पस्त।
जैसे पाकिस्तान का, सूर्य हो रहा अस्त।।
विविध
रिश्ते भी देते कहाँ, अब रिश्तों को भाव।
देकर मरहम हाथ में, करते जमकर घाव।।
छिपे शेर की खाल में, गीदड़ कितने आज।
लगता उनको चल रहा, केवल उनका राज।।
आँसू देकर आज क्यों, खुश हो इतने यार।
तुमको भी इस दौर से, होना कल दो चार।।
अपनी यारी मृत्यु से, बढ़ा लीजिए आप।
नहीं रहेगा आपके, जीवन में अभिशाप।।
बड़ी शिकायत आपको, हमसे तुमको यार।
नहीं समझते मित्र क्यों, इस जीवन का सार।।
हमने जिन पर किया था, आँख मूँद विश्वास।
उन सबने दिखला दिया, लंबा बाईपास।।
अपनी ग़लती मानना, क्या है मेरा गुनाह।
नहीं जानते मित्रवर, मेरे मन की थाह।।
समझ नहीं आता मुझे, उसकी कैसी सोच।
या फिर बुद्धि विवेक को, आया कोई मोच।।
अपने कृत्यों पर नहीं, जिनको आती शर्म।
और आप हैं पूछते, उनका क्या है धर्म।।
शायद तुम हो भूलते, परिवर्तन की नीति।
मिलना तुमको भी वही, डाल रहे जस रीति।।
हमने जब भी आपको, झुक कर किया प्रणाम।
बैठे ठाले हो गया, नाहक ही बदनाम।।
निंदा नफरत भूलकर, करिए अपना काम।
मिले सफलता आपको, संग मिलेगा नाम।।
अपनी करनी देखना, सबसे पहला काम।
इससे सुंदर कुछ नहीं, जीवन का आयाम।।
लक्ष्मी जी आयीं अभी, बड़े ठाठ से मित्र।
परिजन सारे खींचते, खुशियों के नव चित्र।।
रिश्ते भी खोने लगे, हर दिन अपने भाव।
नित्य नये हैं दे रहे, उल्टे सीधे घाव।।
अपने ही विश्वास का, गला घोंटते आज।
विषय शोध का है बड़ा, क्या है इसका राज।।
हमने जिनको है दिया, बड़े प्रेम से भाव।
वे ही हमको दे रहे, सबसे ज्यादा घाव।।
नीति नियम सिद्धांत को, भूल रहे हैं लोग।
दुख का कारण है यही, जिसे रहे सब भोग।।
बलिबेदी पर स्वार्थ के, चढ़े जा रहे लोग।
बदले में हैं पा रहे, तरह तरह के रोग।।
जीवन में किसको भला, मिलता है सुख चैन।
किसकी बुझती प्यास है, सूखे सबके नैन।।
चलते-चलते थक गये, गंगा तीरे आप। शाँत भाव से बैठकर, करिए माला जाप।।
अधिकारों का अब नहीं, रहा किसी के मोल।
है क्या झूठी ये तुला, या झूठा है तोल।।
कर्तव्यों का आजकल, किसे रहा अब बोध।
सबसे पहले चाहिए, होना इस पर शोध।।
चिंता लेकर चल रही, हमें चिता की ओर।
ज्ञानी-अज्ञानी सभी, पाते अंतिम छोर।।
आप शिकायत कर रहे, ईश्वर से दिन-रात।
चिंतन भी तो कीजिए, उनके कुछ जज़्बात।।
सुख-दुख जीवन खेल है, खेल रहे हम आप।
जो कल कहता पुण्य था, आज कहे वो पाप।।
ईश्वर भी होते दुखी, देख हमारे ढंग।
सोच-सोच हैरान हैं, कैसे बदला रंग।।
गर्मी
गर्मी को हैं हम सभी, दोषी मानें मित्र।
खींचा भी तो आपने, कल में इसका चित्र।।
जीवन को हमने किया, जान बूझ बेहाल।
तभी आज हम हो रहे, गर्म तवे सा लाल।।
पशु-पक्षी बेचैन हैं, दें मानव को दोष।
उनके मन भी फूटता, समझो उनका रोष।।
खुद ही अपने कर्म पर, आप कीजिए गौर।
याद करो एक बार तो, बीते कल का दौर।।
गर्मी से क्यों कर रहे, भाई दो- दो हाथ।
सोचो कितना आपने, फोड़ा उसका माथ।।
विनम्र श्रद्धांजलि
*
श्रद्धा के दो शब्द ही, हम दे सकते आज।
हाथ छुड़ाकर क्यों गईं, रहा नहीं अरु काज।।