गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

स्वप्न में रंग भरते रहे दो नयन।
चेतना में विचरते रहे दो नयन।

देखते भी रहे कनखियों से मुझे,
आंज काजल सँवरते रहे दो नयन।

बाज़ुओं में बंधे कसमसाते रहे,
सिर झुकाए सिहरते रहे दो नयन।

द्वार पर मेरी पदचाप पहचानकर,
सीढ़ियों से उतरते रहे दो नयन।

जिस गली से मुझे था गुज़रना, वहाँ
रोज दो दीप धरते रहे दो नयन।

हर कठिन राह में बाँह थामे हुए,
हौसले से गुज़रते रहे दो नयन।

जब सफ़र पर चला, खिड़कियों में खड़े,
दूर तक बात करते रहे दो नयन।

— बृज राज किशोर ‘राहगीर’

बृज राज किशोर "राहगीर"

वरिष्ठ कवि, पचास वर्षों का लेखन, दो काव्य संग्रह प्रकाशित विभिन्न पत्र पत्रिकाओं एवं साझा संकलनों में रचनायें प्रकाशित कवि सम्मेलनों में काव्य पाठ सेवानिवृत्त एलआईसी अधिकारी पता: FT-10, ईशा अपार्टमेंट, रूड़की रोड, मेरठ-250001 (उ.प्र.)

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