कविता

रहने दो अब जाने दो

निंदा करता निंदक अच्छा, जो कहता है कहने दो।
सुनना धर्म हमारा है सब , रहने दो अब जाने दो।
जब दिन होते सुख के सागर, मीत हजारों बनते हैं।
दुख में साथी मुख सब फेरें, भौंहें अपने तनते है।
जिस से उनका दिल खुश हो, ऐसे ही खुश होने दो।
सुनना धर्म हमारा है सब , रहने दो अब जाने दो।
अपनी सुथरी राहे चलना, झूठे हिम झुक जाएंगे।
देखें गे जब हिम्मत तेरी, सागर भी रुक जाएंगे।
हम ने पाई किस्मत अपनी, उन को उनकी पाने दो।
सुनना धर्म हमारा है सब , रहने दो अब जाने दो।
कुछ कहना अधिकार नहीं है,कहते स्वीकार नहीं है।
चलता हाथी कुत्ते भौंके, उन से प्रतिकार नहीं है।
अपनी मर्यादा में रहना, जूठा खाएं खाने दो।
सुनना धर्म हमारा है सब , रहने दो अब जाने दो।
संस्कार है यही सिखाते, सच के पथ चलना सीखो।
आदर से तुम झुकते रहना, तटिनी सा बढ़ना सीखो।
प्रेम गली में आना चाहें, प्रेम सहित तुम आने दो।
सुनना धर्म हमारा है सब , रहने दो अब जाने दो।

— शिव सन्याल

शिव सन्याल

नाम :- शिव सन्याल (शिव राज सन्याल) जन्म तिथि:- 2/4/1956 माता का नाम :-श्रीमती वीरो देवी पिता का नाम:- श्री राम पाल सन्याल स्थान:- राम निवास मकड़ाहन डा.मकड़ाहन तह.ज्वाली जिला कांगड़ा (हि.प्र) 176023 शिक्षा:- इंजीनियरिंग में डिप्लोमा लोक निर्माण विभाग में सेवाएं दे कर सहायक अभियन्ता के पद से रिटायर्ड। प्रस्तुति:- दो काव्य संग्रह प्रकाशित 1) मन तरंग 2)बोल राम राम रे . 3)बज़्म-ए-हिन्द सांझा काव्य संग्रह संपादक आदरणीय निर्मेश त्यागी जी प्रकाशक वर्तमान अंकुर बी-92 सेक्टर-6-नोएडा।हिन्दी और पहाड़ी में अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। Email:. Sanyalshivraj@gmail.com M.no. 9418063995

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