कविता

जिन्दगी जीते रहे

न जीते न हारे जिन्दगी जीते रहे।
जिन्दगी के ईशारों पर नाचते रहे।।

बीते कल की कहानी दुहराते रहे।
आज की सुधि लेने से कतराते रहे़।।

ख़ुशी-ख़ुशी सुख के दिन काटते रहे।
दुःख को भी हंस कर गले लगाते रहे।।

दुनियाँ की भीड़ में समायोजित करते रहे।
भीड़ का हिस्सा ख़ुद को बनाते रहे।।

जब-जब गर्दिश में तारे मेरे आते रहे।
उम्मीद का दीया मन में जलाते रहे।।

आसमान छूने की हरदम तमन्ना बनाते रहे।
भूला कभी न जमीन पर पैर टिकाये रहे।।

— मंजु लता

डॉ. मंजु लता Noida

मैं इलाहाबाद में रहती हूं।मेरी शिक्षा पटना विश्वविद्यालय से तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हुई है। इतिहास, समाजशास्त्र,एवं शिक्षा शास्त्र में परास्नातक और शिक्षा शास्त्र में डाक्ट्रेट भी किया है।कुछ वर्षों तक डिग्री कालेजों में अध्यापन भी किया। साहित्य में रूचि हमेशा से रही है। प्रारम्भिक वर्षों में काशवाणी,पटना से कहानी बोला करती थी ।छिट फुट, यदा कदा मैगज़ीन में कहानी प्रकाशित होती रही। काफी समय गुजर गया।बीच में लेखन कार्य अवरूद्ध रहा।इन दिनों मैं विभिन्न सामाजिक- साहित्यिक समूहों से जुड़ी हूं। मनरभ एन.जी.ओ. इलाहाबाद की अध्यक्षा हूं। मालवीय रोड, जार्ज टाऊन प्रयागराज आजकल नोयडा में रहती हैं।

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