जिन्दगी जीते रहे
न जीते न हारे जिन्दगी जीते रहे।
जिन्दगी के ईशारों पर नाचते रहे।।
बीते कल की कहानी दुहराते रहे।
आज की सुधि लेने से कतराते रहे़।।
ख़ुशी-ख़ुशी सुख के दिन काटते रहे।
दुःख को भी हंस कर गले लगाते रहे।।
दुनियाँ की भीड़ में समायोजित करते रहे।
भीड़ का हिस्सा ख़ुद को बनाते रहे।।
जब-जब गर्दिश में तारे मेरे आते रहे।
उम्मीद का दीया मन में जलाते रहे।।
आसमान छूने की हरदम तमन्ना बनाते रहे।
भूला कभी न जमीन पर पैर टिकाये रहे।।
— मंजु लता