बेबस हो कर मत
इतनी जल्दी न हथियार डाल आओ।
बेबस हो कर मत आँसू बहाओ।
मकड़ी से सीखो महीन धागों से जाल बुनना,
पक्षिणी से तिनका-तिनका चोंच में भर लाना।
मधुमक्खी सी जिद्द-जीवट से छत्ता बनाना।
भागीरथ प्रयासों से भागीरथी धरा पर लाना!
बीच राह में न थक कर लौट आओ।
बेबस हो कर मत आँसू बहाओ।
वज्र से भी मजबूत हौसला हो जिनमें,
पहाड़ काट दशरथ मांझी ढूंढ़ते राह उनमें!
चट्टानों से भिड़ने का जिगरा हो जिनमें ,
बौनी है एवरेस्ट की चोटियाँ उनकी राह में!
सही दिशा की ओर बढ़ते चले जाओ।
बेबस हो कर मत आँसू बहाओ।
लक्ष्य पर गढाएँ रखना मनुज पैनी नज़र,
सोफिया कुरैशी बन ध्वस्त कर आतंकी बंकर।
हौसले की उड़ान भर अंतरिक्ष को है छूना
असफलता करें श्रीगणेशा की चाहत दूना।।
तूफानों से ड़र न दरया से दूरियाँ बनाओ।
बेबस हो कर मत आँसू बहाओ।
जीत है बड़ी खुद्दार, मनुहार चाहती है।
निरंतर प्रयासों का नवलखा हार चाहती है।
चुनौतियों को दे चुनौती मन मार्ग चुनता है।
जिद्दी ही ‘शिवशक्ति’ पर झण्डा गाड़ता है।
हार कर न हार से निराश हो जाओ।
बेबस हो कर मत आँसू बहाओ।
मंजिलों का कारवाँ बढ़ता रहे निरन्तर,
ड्रोन, मिसाईल, बमों को जवाब दो डट कर।
नवाचार, आधुनिकता मेघा की हो नित पहचान
शान्ति, प्रेम, भाईचारा हो विश्व का विजय गान।
बारूद पर बैठ न श्वेत परिंदे उड़ाओ।
बेबस हो कर मत आँसू बहाओ।
— कुसुम अशोक सुराणा