कहानी – ऑटिज्म की मरीज बनाम संगीत की देवी
माता-पिता ने उसका नाम सरला रखा था. बिना किसी विशेष परेशानी के साथ बड़ी सरलता से उसका जन्म हुआ था और सरलता से पल भी रही थी. वो मां का चुंबन लेती थी और पूछने पर कि वो कितनी बड़ी है, सिर पर हाथ रखकर बताती कि इतनी बड़ी है! 12 महीने तक ऐसा ही चला.
अब उसने मां का चुंबन लेना भी बंद कर दिया और कितनी बड़ी है बताना भी! मां को कुछ शक हुआ. 16 महीने में वह जो थोड़ा बहुत बोलती थी, वह भी नहीं कर पा रही थी. वह अपने आप में खोई हुई सी रहने लगी और उसने अपना नाम सुनकर कोई प्रतिक्रिया की क्षमता भी पूरी तरह से चली गई. डॉक्टर को दिखाने पर उसने उसे ऑटिज्म का मरीज बताया.
“यह कभी ठीक नहीं हो सकती! संशोधन चिकित्सा का खर्च भी बहुत ज्यादा होता है, आप लोग उठा नहीं पाओगे!” उम्मीद के विपरीत डॉक्टर ने दो टूक जवाब दिया.
ममता, विश्वास और आत्मविश्वास से ओतप्रोत मां इसे कैसे मान लेती! गूगल से देखकर उसने स्वयं ही संशोधन चिकित्सा करनी शुरु कर दी.
ऑटिस्टिक व्यवहार के अलावा वह बहुत दुबली-पतली, उसकी आँखों के नीचे काले घेरे थे, वह रात भर सो नहीं पाती थी, उसे भयानक दस्त, लगातार बहती नाक और क्षणिक हल्का बुखार रहता था. एक डॉक्टर ने उसे एंटीवायरल और एंटीफंगल दवा दी और वह खुलने लगी और सामान्य दुनिया में आने लगी.
मां ने यह भी जाना कि ऐसे बच्चों में भी कोई-न-कोई हुनर होता है. उसे संगीत सुनना अच्छा लगने लगा. मां ने उसे संगीत सुनाना शुरु किया, खुद भी संगीत सीखा और सरला भी उनके साथ गाने लगी. स्कूल में सरला के साथ मां भी सहायक के रूप में जा रही थीं, अब उसकी भी जरूरत नहीं पड़ रही थी. घर में भी वह मां के साथ किताब पढ़ने लगी. मां की मेहनत रंग लाई, अब सरला संगीत-क्षेत्र की विशेषज्ञ मानी जाने लगी है, स्वयं गीत लिखती है, धुन बनाती है, नोटेशन बनाती है, संगीत सिखाती है और अपने साथ अपने शिष्यों को भी प्रतियोगिताओं में जीतने का सिलसिला बनाए रखा है. ऑटिज्म की मरीज सरला अब संगीत की देवी सरला बन गई थी!
— लीला तिवानी