स्वास्थ्य

21 जून योग दिवस : प्राचीन परंपराओं को समेटे आधुनिक युग का योगा

21 जून, अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में  अपनी लोकप्रियता हासिल करता जा रहा है। 12 वर्ष पहले इसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरी दुनिया को योग दिवस मनाने का संदेश दिया था,जिसे पूरी दुनिया में सराहा और स्वीकारा गया। योग दिवस के जनक भारत में भी इस दिन योग की शुरुआत सूरज की पहली किरण के साथ एक अनोखे उत्साह से होती है। सरकारी से लेकर तमाम सामाजिक संगठनों द्वारा पूरे देश में योग के कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी कैबिनेट के सदस्यों से लेकर राज्यों के राज्यपाल, मुख्यमंत्री और तमाम मंत्री,नेता,अभिनेता,खिलाड़ी, बुद्धिजीवी इन कार्यक्रमों में भाग लेते हैं। भाग दौड़ की इस जिंदगी में शारीरिक व्ययाम जब पीछे छूटता जा रहा है ऐसे में योग दिवस शरीर को स्वस्थ्य रखने के लिये एक मील का पत्थर साबित हो रहा है।  अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाया जाने वाला यह दिन केवल शारीरिक व्यायाम का प्रतीक नहीं, बल्कि मानव जीवन को संतुलित करने की एक गहरी कला का उत्सव है। बीते वर्ष 21 जून की सुबह की ठंडी हवा में, जब दिल्ली के इंडिया गेट पर हजारों लोग योग के लिए एकत्र हुए, तो वह दृश्य किसी सांस्कृतिक उत्सव से कम नहीं था। रंग-बिरंगे योग मैट, अलग-अलग उम्र के लोग, और एक सामूहिक ऊर्जा ने वातावरण को जीवंत कर दिया। यह केवल एक दिन की बात नहीं थी; यह एक वैश्विक आंदोलन का हिस्सा था, जो भारत की प्राचीन परंपरा को दुनिया के कोने-कोने तक ले गया। इस बार भी कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिलने वाला है।

योग, जो कभी भारतीय ऋषि-मुनियों की तपस्या का हिस्सा था, आज एक वैज्ञानिक और समग्र जीवन शैली के रूप में स्वीकार किया जा रहा है। इसकी जड़ें हजारों साल पुरानी हैं, फिर भी यह आधुनिक जीवन की जटिलताओं के लिए उतना ही प्रासंगिक है। 21 जून को संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित करने का प्रस्ताव जब भारत ने 2014 में रखा, तो इसे 177 देशों का समर्थन मिला। यह केवल एक राजनयिक जीत नहीं थी, बल्कि मानवता के लिए एक साझा दृष्टिकोण था। योग का अर्थ केवल आसन या शारीरिक व्यायाम तक सीमित नहीं है; यह मन, शरीर और आत्मा के बीच सामंजस्य स्थापित करने की कला है।

इस दिन दिल्ली के अलावा देश के कोने-कोने में और दुनिया के विभिन्न शहरों में लोग योग के लिए एकत्र होते हैं। स्कूलों में बच्चे, कार्यालयों में कर्मचारी, और गांवों में किसान, सभी ने अपने-अपने तरीके से इस दिन को मनाते हैं। गौरतलब हो, योग की यह सार्वभौमिक स्वीकार्यता इसके लचीलेपन और समावेशी स्वभाव को दर्शाती है। एक तरफ जहां युवा सूर्य नमस्कार के गतिशील आसनों में ऊर्जा पाते हैं, वहीं वरिष्ठ नागरिक प्राणायाम और ध्यान में शांति तलाशते हैं। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो उम्र, लिंग, या सामाजिक स्थिति की सीमाओं को तोड़ती है, लेकिन योग दिवस केवल उत्सव का दिन नहीं है; यह एक गहरे विश्लेषण की मांग करता है। आधुनिक जीवनशैली में तनाव, चिंता, और शारीरिक रोगों की बढ़ती संख्या ने योग को और भी जरूरी बना दिया है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं 2030 तक वैश्विक स्वास्थ्य बोझ का एक बड़ा हिस्सा होंगी। योग, विशेष रूप से ध्यान और प्राणायाम, तनाव को कम करने और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में प्रभावी साबित हुआ है। वैज्ञानिक अध्ययनों ने दिखाया है कि नियमित योग अभ्यास से कोर्टिसोल जैसे तनाव हार्माेन का स्तर कम होता है, जिससे चिंता और अवसाद में कमी आती है।

हालांकि, योग के प्रचार में कुछ चुनौतियां भी हैं। इसे केवल एक शारीरिक व्यायाम के रूप में प्रस्तुत करने की प्रवृत्ति ने इसके आध्यात्मिक और दार्शनिक आयामों को धुंधला किया है। पतंजलि के योगसूत्र, जो योग के आठ अंगोंकृयम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, और समाधिकृका वर्णन करते हैं, आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। फिर भी, बाजारीकरण और व्यावसायीकरण ने योग को कभी-कभी एक फैशन स्टेटमेंट या फिटनेस ट्रेंड तक सीमित कर दिया है। योग स्टूडियो, महंगे योग मैट, और डिज़ाइनर योग वस्त्र इसकी मूल सादगी को चुनौती देते हैं।

इसके बावजूद, 21 जून का दिन हमें याद दिलाता रहता  है कि योग केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए नहीं, बल्कि सामाजिक और पर्यावरणीय संतुलन के लिए भी है। योग हमें अपने भीतर और अपने आसपास की दुनिया के साथ सामंजस्य बिठाने की प्रेरणा देता है। जब लोग एक साथ योग करते हैं, तो एक सामूहिक ऊर्जा पैदा होती है, जो न केवल व्यक्तिगत स्तर पर, बल्कि सामुदायिक स्तर पर भी सकारात्मक बदलाव लाती है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि योग केवल एक प्राचीन परंपरा नहीं, बल्कि एक आधुनिक समाधान है, जो हमें एक स्वस्थ, संतुलित, और सार्थक जीवन की ओर ले जाता है।

संजय सक्सेना

संजय सक्सेना

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