हास्य व्यंग्य

हास्य-व्यंग्य : पलकां में बंद कर राखूंली…

एक गाना अक्सर सुनने में आता है । थ्हांने काजलियौ बणाल्यूं… म्हारै नैणा में रमाल्यूं राज पलकां में बंद कर राखूंली ….. हो …. हो… बहुत ही ख़ूबसूरत गीत है। लता जी व मुकेश जी की आवाज़ में गाया हुआ मेरा पसंदीदा गीत होने के कारण मैं भी अक्सर गुनगुनाती रहती हूँ… एक दिन यूँ ही गुनगुनाते हुए… इस गीत के मुखड़े की गहराई में चली गई … और खुरापाती दिमाग़ जाने क्या – क्या सोचता चला गया… आइये आप भी सरीक़ हो जाये मेरी इस खुरापात में… क्योंकि जब तक आप सें न बाटूँगी कुछ अधूरापन लगेगा.. तो गाने के बोल हैं … थ्हांनै काजलियौ बणाल्यूं, म्हारै नैणां में रमाल्यूं,राज पलकां मं बाँध कर राखूलीं हो हो… राज पलकां में… । बात केवल हँसी मजाक़ तक हो तो ठीक है, परन्तु अगर सचमुच में ही औरतें पति को काजल बना कर आँखों में रखने लग गईं तो विश्व का आठवाँ अजूबा यही होगा, फिर तो पति को सबसें पहले काजल बना कर आँखों में रखने वाली महिला का नाम गिनिज बुक में आने सें कोई नहीं रोक सकता।

आजकल लोगों का कुछ भरोसा भी तो नहीं हैं । गिनिज बुक में नाम छपवाने के लिए लोग जाने क्या-क्या उल्टा-सीधा कर बैठते हैं । अगर यह बात सच होने लग गई तो राज (पति के ) जाने क्या हाल होंगे और इतना सारा काजल तो आँख में रोके न रूक सकेगा, तो निकल-निकल बाहर आयेगा। फिर तो आँखें क्या पूरा शरीर घर, मोहल्ला, गाँव, शहर कपड़े-लत्ते सब कुछ काले ही नज़र आयेंगे… उसके अतिरिक्त एक बात और कि जितना राज का (पति) व वजन उतना वजनी काजलिया- औरतें में पति के वज़न को कम करने की नहीं अपितु बढ़ाने की होड़ लग जायेगी… ख़बर में जो आना है… कि सबसे वजनी काजलिया… फ़लां… फ़लां औरत की आँखों में रचा हुआ है। अब आप ही बताओ कि क्या इतना सारा काजल भला आँखें में समा पायेगा… और यदि सभी औरतें अपने-अपने पति को काजलिया बनाकर इस तरह आँखें में रखने लगी तो दुनिया में मर्द (आदमी) नाम का प्राणी विलुप्त हो जायेगा और यदा-कदा पति आँखें सें बाहर गिरा पड़ा मिल भी गया तो क्या उस काले-कलूटे को कोई पहचान पायेगा । वैसे भी क्या दुनिया में कालिख कम हैं जो उस पर यें बची-खुची कसर ये औरतें पूरी करना चाहती हैं। फिर तो जिधर देखो कालिमा के सिवा कुछ नज़र ही न आना है।

माँ बेटे को कुछ काम बताने के लिए ढूँढेगी तो मालूम पडे़गा बीबी की आँखों में काजल बना बैठा है। बहन राखी बाँधने आये तो काला – कलूटा भाई भाभी की आँखों में सें निकले… अगर बहन भी अपने पति को काजलिया बनाती हो तो ठीक है काम शांति से निपट जायेगा अन्यथा बहन तो डर कर उल्टे पाँव दौड़ जायेगी। वैसे भी आजकल ऐसे कितने प्रतिशत आदमी बचे हैं जो माँ- बाप का कहना मानते हैं व पत्नि का कहना टाल पाते हैं! उसका नतीज़ा भी यह होता है कि माँ-बाप टेढे-टेढे रहने लगते हैं… और माँ-बाप का कहना मानो तो बीबी तो दूसरे दिन गुमशुदा की विज्ञप्ति में आ जाती हैं या उठावणा अथवा शोक सन्देश में छप जाती है। घर की सुख – शांति ऐसे गायब हो जाती है जैसे गधे के सर सें सींग । रोज़ की बहस झिक-झिक से परेशान आदमी बेचारे काजल बनने में ही ख़ुद का व बाक़ी घरवालों का भला समझते हैं एवं बिना ना-नुकूर किये आत्मोसर्ग कर बैठते हैं ।

वैसे देखा जाय तो काजल बनाने की प्रक्रिया है बड़ी कठिन… जाने कितनी मशीनों में घुटने – पिसने, जलने के पश्चात काजल बनता है और तब कहीं जाकर मृगनैनी आँखों में सज पाने का अधिकार मिलता है फिर भला उसे कैसे नाराज़ किया जा सकता है । मुझे अपने – अपने पतियों को काजल बनाने के इस आइडिया में एक फ़ायदा यह नज़र आता है कि काजल बनने के बाद आदमी कम से कम और कहीं मुँह नहीं मार सकता और वह अपराध करते हुए भी डरेगा क्योंकि काले-काले निशान चारों तरफ़ छूट जाने के डर में व्यक्ति को ग़ल्तियाँ करने में संकोच तो होगा ही! काले-काले निशान चारों तरफ़ अपनी छाप छोड़ देगें और चोर, गुंडे, उच्चके अपराधी पकड़ने में मदद करेंगे। मतलब कि पुलिस व प्रशासन का आधा काम तो यह औरतें कम कर सकती हैं, अपने-अपने पतियों को काजल बनाकर वैसे देखा जाय तो विचार बूरा नही है परन्तु मैं तो चाहती हूँ कि काजल बनाने के बजाय औरतें अपने-अपने पतियों को उजाला (अच्छाई) बनायें तो ज़्यादा उचित रहे फिर दूनिया सें अँधेरा (बुराई) का नामोनिशान मिट जायेगा । फिर किसी बात का भय ही न होगा, अँधेरे स्वयं ही अपनी चद्दर समेट लेंगे, चारों तरफ़ सुख-शांति व अथाह आनंद हो जायेगा ।

काश ! मेरी यह कल्पना साकार हो ।

आशा पाण्डेय ओझा

आशा पाण्डेय ओझा

जन्म स्थान ओसियां( जोधपुर ) जन्मतिथि 25/10/1970 पिता : श्री शिवचंद ओझा शिक्षा :एम .ए (हिंदी साहित्य )एल एल .बी। जय नारायण व्यास विश्व विद्यालया ,जोधपुर (राज .) प्रकाशित कृतियां 1. दो बूंद समुद्र के नाम 2. एक कोशिश रोशनी की ओर (काव्य ) 3. त्रिसुगंधि (सम्पादन ) 4 ज़र्रे-ज़र्रे में वो है शीघ्र प्रकाश्य 1. वजूद की तलाश (संपादन ) 2. वक्त की शाख से ( काव्य ) 3. पांखी (हाइकु संग्रह ) देश की विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं व इ पत्रिकाओं में कविताएं ,मुक्तक ,ग़ज़ल,क़तआत ,दोहा,हाइकु,कहानी , व्यंग समीक्षा ,आलेख ,निंबंध ,शोधपत्र निरंतर प्रकाशित सम्मान -पुरस्कार :- कवि तेज पुरस्कार जैसलमेर ,राजकुमारी रत्नावती पुरस्कार जैसलमेर ,महाराजा कृष्णचन्द्र जैन स्मृति सम्मान एवं पुरस्कारपूर्वोत्तर हिंदी अकादमी शिलांग (मेघालय ) साहित्य साधना समिति पाली एवंराजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर द्वारा अभिनंदन ,वीर दुर्गादास राठौड़साहित्य सम्मान जोधपुर ,पांचवे अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विकास सम्मलेनताशकंद में सहभागिता एवं सृजन श्री सम्मान,प्रेस मित्र क्लब बीकानेरराजस्थान द्वारा अभिनंदन ,मारवाड़ी युवा मंच श्रीगंगानगर राजस्थान द्वारा अभिनंदन , संत कविसुंदरदास राष्ट्रीय सम्मान समारोह समिति भीलवाड़ा राजस्थान द्वारासाहित्य श्री सम्मान ,सरस्वती सिंह स्मृति सम्मान पूर्वोत्तर हिंदीअकादमी शिलांग मेघालय ,अंतराष्ट्रीय साहित्यकला मंच मुरादाबाद केसत्ताईसवें अंतराष्ट्रीय हिंदी विकास सम्मलेन काठमांडू नेपाल मेंसहभागिता एवं हरिशंकर पाण्डेय साहित्य भूषण सम्मान ,राजस्थान साहित्यकारपरिषद कांकरोली राजस्थान द्वारा अभिनंदन ,श्री नर्मदेश्वर सन्यास आश्रमपरमार्थ ट्रस्ट एवं सर्व धर्म मैत्री संघ अजमेर राजस्थान के संयुक्ततत्वावधान में अभी अभिनंदन ,राष्ट्रीय साहित्य कला एवं संस्कृति परिषद्हल्दीघाटी द्वारा काव्य शिरोमणि सम्मान ,राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुरएवं साहित्य साधना समिति पाली राजस्थान द्वारा पुन: सितम्बर २०१३ मेंअभिनंदन सलिला संस्था सलुम्बर द्वारा सलिला साहित्य रत्न सम्मान 2014 रूचि :लेखन,पठन,फोटोग्राफी,पेंटिंग,पर्यटन संपर्क : 07597199995 /09414495867 E mail I D [email protected] ब्लॉग ashapandeyojha.blogspot.com पृष्ठ _आशा का आंगन एवं Asha pandey ojha _ sahityakar

4 thoughts on “हास्य-व्यंग्य : पलकां में बंद कर राखूंली…

  • आशा पाण्डेय ओझा

    @yuva-9461cce28ebe3e76fb4b931c35a169b0:disqus जी सर हार्दिक आभार आपका

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    मज़ा आ गिया पड़ के .

  • आशा पाण्डेय ओझा

    बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय विजय कुमार सिंगल जी व्यंग रचना प्रकाशित करने हेतु

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया हास्य !

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