निंदक नियरे राखिए, अड़ोसी-पड़ोसी बनवाए
अब क्या कहूं कबीरदास जी को। खुद तो जो कुछ भुगतना था, भुगता और चले गए। लेकिन दूसरे लोगों के लिए
Read Moreअब क्या कहूं कबीरदास जी को। खुद तो जो कुछ भुगतना था, भुगता और चले गए। लेकिन दूसरे लोगों के लिए
Read Moreलौह पुरुष को रात भर नींद नहीं आई। उनकी पीड़ा का पारावार नहीं है। उन्हें आज पहली बार अपनी भलमनसाहत
Read Moreआज सुबह पड़ोसी मुसद्दी लाल फटे और बदरंग भीगे जूते जैसा मुंह सुजाये मेरे घर में नमूदार हुए। वे किसी
Read Moreस्त्री जीवन भर तीन ‘प’ यानि पिता, पति और पुत्र नामक रिश्ते से मुक्त नहीं हो पाती। इनमें से एक
Read Moreगधे तो वाकई गधे होते हैं। एकदम सीधे-सादे, मेहनती और संतोषी। गधे के यही तीन गुण उसको महान बना देते
Read Moreठीक उसी तरह ‘कि पहले अंडा आया कि मुर्गी’ की तरह यह सवाल भी मौजू है कि पहले जूते आए
Read Moreहमारे देश के मजदूर-किसान भी न..एकदम बौड़म हैं बौड़म। धेले भर की अकल नहीं और अकल के पीछे लट्ठ लिए
Read Moreइस देश में कभी हुआ करता था त्रेतायुग। अरे सतयुग के बाद आने वाला त्रेतायुग। उस त्रेतायुग में पैदा हुए
Read Moreराजमार्ग से थोड़ा हटकर खुले मदिरालय प्रांगण में परम विपरीत विचारधारा वाले दल के कर्मठ कार्यकर्ता मिले। दोनों परम मद्यप
Read Moreसुबह सोकर उठा ही था कि मुसद्दी लाल किसी आतंकवादी की तरह घर में घुस आए। आते ही बिना कोई
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