कार्तिक पूर्णिमा
न खुला अम्बर न खुली छत है चाँद मुस्कुरा रहा फेंक रहा अपनी चांदनी बरसा रहा अमृत कैसे पाऊं यह
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Read Moreशहर की एक तवायफ ने चुनाव लड़ने के लिए पर्चा भरा परचा भरने के बाद अपनी पहली चुनावी सभा में
Read Moreरात के अंतिम प्रहर में शिशु रूप में स्वप्न में देखा अपने आपको बेपरवाह माँ के आँचल से खेल रहा
Read Moreपहले मिलते थे वो बड़ी गरमजोशी से न जाने कैसी ब्यार चली जो रूख बदल गया सनम तुम चाहो तो
Read Moreसिमट सिमट अब कितना सिमटेंगे दस बारह से होते होते एक पर आ गए कभी गर्व था परिवार पर अपने
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