बसंत मुरझाया
रिश्तों में हैं पतझड़ ऋतु आया, खिलता था कभी, बसंत मुरझाया।। फूलों में मनभावन खुशबू नहीं हैं, तितलियों में चंचलता
Read Moreरिश्तों में हैं पतझड़ ऋतु आया, खिलता था कभी, बसंत मुरझाया।। फूलों में मनभावन खुशबू नहीं हैं, तितलियों में चंचलता
Read More“श्रुति, क्या कर रही हो अब तक?” “मुझे जल्दी जाना है आज।” ” चले जाओ। मैं ने कब रोका है।”
Read Moreकल और आज हम तुम जब पहली बार मिले थे, अजनबी से।देखा एक दूजे को और मन को भा गये।
Read Moreमौन कभी प्रेम की स्वीकृति होता है, मौन कभी प्रखर विरोध भी होता है।। शब्द मुखर न हो, मौन सबकुछ
Read Moreकल्याणी मन भावना, आस्था से कर भक्ति। ईश्वर प्रेम प्रभाव में, भव तारण की शक्ति।। भव तारण की शक्ति, पाप
Read Moreयाचक बनना मत कभी, मंदिर प्रभुजी धाम। परमात्मा ईश्वर लिखे, भाग्य उचित अभिराम।। भाग्य उचित अभिराम, सत्य, संयम की धारा।
Read Moreखुशियां जीवन में खिली, सुरभित था आनंद। चाहा वो पाया सदा, मिला हर्ष मकरंद।। मिला हर्ष मकरंद, भ्रमर थे गुनगुन
Read Moreउमंग, उल्लास, आह्लाद, आनंद, प्रकृति रूप निखरी मनहर रंगत। नवल चेतना का रूमझुम आगाज, बहार ले फिर लौट आया बसंत।।
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