कविता धनंजय वितानगे श्री लंका 01/08/2014 सुख का अधिकार हथेली खुरदरी, वज़न कम नहीं उठाती, पर न उठा सके । आँखें धँसीं, वेदना से भरी झेलती, पर न झेल Read More