हैं वानप्रस्थी बृद्ध हुए, बिना वन गए
हैं वानप्रस्थी बृद्ध हुए, बिना वन गए; वालक सभी प्रयाण किए, ग्रहस्थी हुए ! ग्रह अपने वे बसाये, रहे संतति
Read Moreहैं वानप्रस्थी बृद्ध हुए, बिना वन गए; वालक सभी प्रयाण किए, ग्रहस्थी हुए ! ग्रह अपने वे बसाये, रहे संतति
Read Moreहैं भ्रम के जाल भरत लाल, अध-पके रहे; पहचान सके खुद को कहाँ, भटकते फिरे ! शिक्षा व दीक्षा हुई
Read Moreक्यों उपस्थित हर घट रहूँ, क्यों तटस्थित ना तट रहूँ; क्यों निहारे हर पट रहूँ, नट बनके क्यों नचता रहूँ
Read Moreअखिलता की विकल उड़ानों में, तटस्थित होने की तरन्नुम में; उपस्थित सृष्टा सामने होता, दृष्टि आ जाता कभी ना आता
Read Moreभव्य भव की गुहा में खेला किए, दिव्य संदेश सतत पाया किए; व्याप्ति विस्तार हृदय देखा किए, तृप्ति की तरंगों
Read Moreहै ज्ञान औ अज्ञान में, बस भेद एक अनुभूति का; एक फ़ासला है कर्म का, अनुभूत भव की द्रष्टि का
Read Moreचन्द्र का प्रतिबिम्ब, ज्यों जल झिलमिलाए; पुरुष का प्रतिफलन, प्राणों प्रष्फुराए ! विकृति आकृति शशि की, जल-तल भासती कब; सतह
Read Moreआज आया लाँघता मैं, ज़िन्दगी में कुछ दीवारें ; खोलता मैं कुछ किबाड़ें, झाँकता जग की कगारें ! मिले थे
Read Moreसमर्पण बढ़ रहा है प्रभु चरण में, प्रकट गुरु लख रहे हैं तरंगों में; सृष्टि समरस हुई है समागम में,
Read Moreकितने मासूम से सबाल रहे, बवाल बिना बात होते रहे; ख़याल अपने अपने सब थे रहे, ख़ुदी को खोते राह
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