मधुगीति : स्वप्न में जब रहा था मैं !
स्वप्न में जब रहा था मैं, कहाँ इस जगती रहा था; मन की अवचेतन गुफ़ा में, मैं किसी क्रीड़ा रहा
Read Moreस्वप्न में जब रहा था मैं, कहाँ इस जगती रहा था; मन की अवचेतन गुफ़ा में, मैं किसी क्रीड़ा रहा
Read Moreचला चलता हृदय हँसता, प्रफुल्लित तरंगित होता; सृष्टि के सुर सुने जाता, इशारे समझता चलता ! धरा धाए मुझे चलती,
Read Moreमधु माधुरी ज़िन्दादिली, उद्यान प्रभु के है खिली; विहँसित प्रखर प्रमुदित कली, जल गगन अवनि से मिली ! बादल बदलते
Read Moreखो गया क्या वत्स मेरा, विधि के व्यवधान में; आत्म के उत्थान में या ध्यान के अभियान में ! उत्तरों
Read Moreहो मुक्त बुद्धि से, हुआ अनुरक्त आत्मा चल रहा; मैं युक्त हो संयुक्त पथ, परमात्म का रथ लख रहा !
Read Moreहलके से जब मुसका दिए, उनको प्रफुल्लित कर दिए; उनकी अखिलता लख लिए, अपनी पुलक उनको दिए ! थे प्रकट
Read Moreपहले के पार्थ सारथी कृष्ण को लगभग ३५०० वर्षों बाद हम में से कुछ लोग अब कुछ समझ पाए हैं
Read Moreपरमात्मा हमारे अपने हैं। वस्तुत: वे हमारे हैं और हम भी उनके हैं ! हम उनसे पत्नी/पति/मित्र से भी ज्यादा
Read Moreप्रष्फुटित चित्त है हुआ जब से, महत महका किया है अन्तस से; अहम् विकसित हुआ किया चुप से, शिशु सृष्टि
Read Moreअचानक उष्ण धार जब छोड़े, ध्यान में मुझको वे रहे जोड़े; गीले आवरण देख नेत्र मुड़े, इससे उद्विग्न वे हुए
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