धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

आज के पार्थ सारथी

पहले के पार्थ सारथी कृष्ण को लगभग ३५०० वर्षों बाद हम में से कुछ लोग अब कुछ समझ पाए हैं । उस समय के अधिकाँश लोग उनके असली स्वरूप को पहचान नहीं पाए थे ।
पार्थ सारथी कृष्ण, महाभारत में पार्थ (अर्जुन) के सारथी रहे । वे रथ पर पार्थ के साथ रहे । वे उनका जीवन रथ चला भी रहे थे, दिग्दर्शन भी कर रहे थे,  सखा भी थे, गुरु भी थे और वस्तुत: जीवन जगत के संचालक भी थे। पाण्डवों के जीवन युद्ध में वे दृष्टा रह कर यथासम्भव बिना शस्त्र प्रयोग किए उनके सारथी, साथी, सखा, रक्षक आदि आदि अनन्त रूपों में रहे! बिना शस्त्र के युद्ध में सारथी रहने वाला विश्व का नियन्ता परम पुरुष ही हो सकता है ! पार्थ सारथी कृष्ण नहीं होते तो पार्थ जीत नहीं पाते । यह भौतिक जगत में पार्थ का प्रशिक्षण भी था और परीक्षा भी ।
आज के कृष्ण सम्भवत: शारीरिक रूप से बिना सारथी बने भी मानसाध्यात्मिक रूप से ही आज के पाण्डवों को विजय दिला सकते हैं। शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक रूप से मानव लगातार उन्नत होता जा रहा है । आज के पाण्डव पहले से बहुत अच्छे बन पा रहे हैं पर कौरव भी पहले से ज्यादा चतुर चालाक अनैतिक व अत्याचारी हो गए हैं ।
आज के कृष्ण का पहले के कृष्ण से अधिक वलशाली, योगी, तान्त्रिक, ऐश्वर्यवान, कूटनीतिज्ञ, राजनीतिज्ञ, दिग्दर्शक, वैज्ञानिक, अभियान्त्रिक, प्रबंध शास्त्री व निदेशक होना नैसर्गिक व स्वाभाविक है । पहले यदि वे १६ कलाओं के अवतार थे तो आज उससे कई गुणा ज्यादा कलाओं में उन्हें अवतरित होना पड़ सकता है !
आज वे घर घर में महा विश्व करा रहे हैं । कभी थोड़ा जागतिक, मानसिक या आध्यात्मिक युद्ध करा कर या कभी बिना कराए भी अनन्त कौरवों को कुछ सैकड़ों पाण्डवों से ही परास्त करा रहे हैं । लगता भी नहीं कि युद्ध हो रहा है पर अहर्निश युद्ध जारी है । लाखों जन जीव जन्म लेते हैं और मृत्यु को पा जाते हैं चलते फिरते ही । सतत युद्ध हो भी रहा है और लगता भी नहीं है !
आज का मानसिक या आध्यात्मिक युद्ध बड़ा सूक्ष्म है । भाई भाई ही कौरव पाण्डव बने संग्राम में लगे हैं । आघात पर आघात चल रहे हैं । जो आज के सामान्य जनों को अद्रष्ट्य कृष्ण को पहचान कर समझ कर उनको समर्पण कर उनको सारथी बना लेते हैं वे ही बच पाते है। कौरवों व पाण्डवों की भिन्नता भी बड़ी सूक्ष्म हो गई है और उनको पहचानना बिना यथोचित आध्यात्मिक प्रतिष्ठा व प्रवीणता के हर किसी के लिए सम्भव नहीं है ।
अत: भक्ति, कर्म, ज्ञान, योग ध्यान- साधना, तन्त्र व गुरु कृपा के बिना आज के कौरवों, पाण्डवों व कृष्ण का परिचय या ज्ञान आसान नहीं । उचित अनुचित का अनुमान व ज्ञान हुए बिना समुचित व्यवहार भी सम्भव नहीं। अतएव अपने आपको संभाले रखने, आज के कृष्ण से रूबरू होने व पाण्डवों का सहयोग लेने देने के लिए साधना ही एक मात्र संबल है । तभी हम आज के पार्थ सारथी को पहचान पाएँगे व उनके अनुरूप चल पाएँगे । यदि ऐसा नहीं कर पाए तो फिर शायद कई शताब्दियों तक भी पुनर्जन्म ले कर आते रहते हुए भी उन्हें ‘अजाना पथिक’ ही समझते रह जाएँगे ।
आज के पार्थ सारथी को जितना शीघ्र हम अपना सारथी बना लें उतनी ही जल्दी हम उनके आज के पार्थ बन सकेंगे । आज उन्हें अनन्त पार्थों की आवश्यकता है क्यों कि कौरव अनन्त अनन्त हो गए हैं । समय न उनके हाथ में है न हमारे । अत: यथाशीघ्र स्वयं को समर्पित कर उनके प्रयोजन में सहयोग करें !
गोपाल बघेल ‘मधु’
टोरोंटो, ओंटारियो, कनाडा