मेरी कहानी 168
सच्ची बात तो यह है कि मुझे इतिहास से लगाव तो बहुत रहा है लेकिन इतिहास को अछि तरह से
Read Moreसच्ची बात तो यह है कि मुझे इतिहास से लगाव तो बहुत रहा है लेकिन इतिहास को अछि तरह से
Read Moreमैं और गियानी जी उठ कर गियानी जी के कमरे में आ गए। यह कमरा घर का फ्रंट रूम ही
Read Moreमहँग़ाई तो हमेशा ही बढ़ती आई है, सरकार तान्खुआह ना बढाए, बातें होती रहे, कोई मांग मानी ना जाए तो
Read Moreदिन मज़े से गुज़र रहे थे। ऐरन को स्कूल ले जाना और स्कूल बन्द होने पर उस को ले आने
Read Moreपुर्तगाल की सैर करके हम घर आ गए और तोहफे सभी को बाँट दिए गए । जसविंदर काम पर जाने
Read Moreअब हम ने कही और तो जाना नहीं था, इस लिए अलगाव में ही घूमना फिरना था। वक्त भी अब
Read Moreसुबह देर से उठे और चाय का इंतज़ार करने लगे जो कुलवंत और गियानों बहन तैयार कर रही थीं। हर
Read Moreपुर्तगाल के मेंन सुकेयर से निकल कर हम सेग्रेस (sagres ) की ओर चल पड़े। सेग्रेस टाऊन कोई इतना बड़ा
Read Moreसुबह चार बजे उठ गए, नहा धो कर कपड़े पहने, कुलवंत ने चाय बनाई और पी कर कमरे से बाहर
Read Moreसुबह उठे तो मज़े से हम चाय के साथ बिस्कुट ले कर बातें करने लगे और आज के प्लैन का
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