संस्मरण

मेरी कहानी 162

पुर्तगाल के मेंन सुकेयर से निकल कर हम सेग्रेस (sagres ) की ओर चल पड़े। सेग्रेस टाऊन कोई इतना बड़ा नहीं है लेकिन टूरिज़्म बढ़ने की वजह से अब नए नए होटल बन रहे हैं। सेग्रेस की महत्ता सिर्फ इस लिए ही है कि यहां एक छोटा सा किला है और यह बिलकुल समुन्दर के किनारे पर सथित है और समुन्दर की बड़ी बड़ी इस किले से टकराती लहरों का शोर हर दम सुनाई देता है। इस किले को जाने के लिए डयूल कैरेजवे बनी हुई है जो लगता है, नई नई ही बनी है। आधे घंटे में हम सेग्रेस के किले के नज़दीक पहुँच गए। कोच पार्क में ड्राइवर ने कोच खड़ी कर दी। वहां पहले भी बहुत सी कोचें खड़ी थीं, जिन में हमारी बस कंपनी नैशनल एक्सप्रेस की कोच भी खड़ी थी। देख कर मुझे कुछ हैरानी हुई कि इंगलैंड से लोग सीधे कोच में भी यहां आते हैं। अब हम सभी किले की ओर जाने लगे। आगे बहुत बड़ा दरवाज़ा था जैसे लाल किले का दरवाज़ा है लेकिन उस से कुछ छोटा है। पांच पांच यूरो का टिकट ले कर हम इस किले के भीतर आ गए। भीतर इतना बड़ा नहीं है लेकिन इस में हैनरी दी नैविगेटर के कुछ निशाँ हैं। हैनरी का निधन1460 में हुआ था और उस के निधन के बाद जहाज़रानी का इंकलाब ही आ गया था, जिस का नतीजा यह हुआ कि पुर्तगाल ने अफ्रीका के बहुत से देशों पर कब्ज़ा कर लिया था, हमारा गाइड हमें यह सब बता रहा था। कोई वक्त था जब पुर्तगाल में बहुत वहम और भ्र्म हुआ करते थे, और इस की वजह से जहाज़ों के कैप्टन समुन्दर में डरते आगे नहीं जाते थे। उन का मानना था कि आगे धरती ख़तम हो जाती थी और आगे बड़े बड़े monster यानी देव राक्षश रहते थे, इसी लिए वोह इस को worlds end बोलते थे। यह हैनरी ही था जिस ने यह सारी मिथें झूठी साबत कर दी थी और new world की खोज शुरू कर दी थी।

हैनरी खुद नैविगेशन में बहुत दिलचस्पी रखता था, इसी लिए उस ने एक सकूल खोला था,जिस में जहाजरानी के लिए नक़्शे बनाना,समुन्दर में हवाओं के बारे में जान्ने के लिए दुनीआं के हर हिस्से से गियान हासल करना, भूगोल, मेडीसीन और बहुत से अन्य सब्जेक्ट्स थे। यह सकूल बाद में एक यूनिवर्सटी बन गिया था। उस समय जहाज़ों के इंजिन तो होते नहीं थे, इस लिए जहाजरानी हवाओं पे निर्भर होती थी या रात को सितारों को देख कर। हैनरी ने अपने विद्वान दुसरे देशों को भेजे ताकि वोह सही नक़्शे बनाना सीख जाएँ और समुन्दर में हर मौसम में हवाओं की गती का गियान हो । समुन्दर में बहुत से ऐसे भाग थे, यहां तूफ़ान बहुत आते थे और जहाज़ तबाह हो जाते थे। हर जहाज़ का कैप्टन हर रोज़ के मौसम का हाल लिखता था। हैनरी खुद इस किले में बैठ कर दूरबीन से समुन्दर की ओर हर रोज़ देखता रहता था। हैनरी के कुछ निशान अभी भी इस किले में हैं। जिस दीवार के नज़दीक खड़े हो कर वोह दूरबीन की मदद से समुन्दर की ओर देखता था, उस दीवार पर कुछ लाइनें खुदी हुई हैं। इस दीवार को देखने के लिए कुछ सीड़ीआं बनी हुई हैं और इन सीड़ीओं से ही इस दीवार पर जाया जा सकता है जो कुछ ऊंचाई पर है और नीचे खुले मैदान में पत्थरों का एक सर्कल बना हुआ है, जिस के सेंटर में से 32 लाइनें सर्कल के आखिर में जाती हैं और इस सर्कल को इंटरनेट पर देखा जा सकता हैं। किले की दीवार की एक ओर एक तोप पढ़ी है जो बहुत मोटी लकड़ी के स्टैंड पर रखी हुई है। एक तरफ छोटा सा चर्च है, जिस के बाहर तकरीबन बीस फ़ीट ऊंचा एक क्रॉस बना हुआ है, इस में हैनरी हर रोज़ प्राथना किया करता था। आगे एक मयूज़ियम है जिस में उस ज़माने की बहुत सी चीज़ें पड़ी हुई हैं।

किले की दीवार बहुत छोटी है और इस से नीचे की ओर समुन्दर दिखाई देता है और लहरें इस किले से टकराती हैं। हम देख कर हैरान हुए कि दो पुर्तगीज़ नीचे लहरों के नज़दीक एक चटान पर बैठे फिशिंग रौड से मछलियां पकड़ रहे थे लेकिन हम देख कर ही डर रहे थे कि यह लोग कहीं नीचे गिर ना जाएँ। इस किले में बहुत कुछ ना होने का कारण यह भी है कि दो दफा समुन्दर में तूफ़ान आ जाने के कारण इस को बहुत नुक्सान पहुंचा था। इस किले को नुक्सान पहुँचने का एक कारण और भी था और वोह था यूर्पीन लड़ाइयों के कारण एक दफा इंगलैंड के कैप्टन सर फ्रांसिस ड्रेक का इस पर तोपों से हमला करना, जिस के कारण इस का बहुत सा हिसा तबाह हो गया था। इस किले की दो दफा मुरमत की गई थी। वैसे इस को किला कहना मुनासिब नहीं होगा, सिर्फ हैनरी की यादगार और लैबोरेट्री ही कह सकते हैं। हैनरी ने इतना बड़ा काम शुरू कर दिया था कि उस के मरने के बाद पुर्तगाल में एक इंकलाब ही आ गया था। हैनरी को नैविगेटर का खिताब तीन सौ साल बाद एक जर्मन इतिहासकार ने दिया था क्योंकि उस ने यह साबत किया था कि यह हैनरी ही था, जिस ने समुन्दर में नए रास्ते खोज लिए थे, जिस के कारण पुर्तगाल इतने देशों पर कब्ज़ा कर सका था । यह हैनरी की कोशिशों का नतीजा था कि उस के मरने के 38 साल बाद वास्कोडिगामा इंडिया जा पहुंचा था और जिस समुंद्री रुट की उस ने खोज की थी, उस का पता सौ साल तक किसी भी यूर्पीन देश को नहीं हुआ था ।शायद आधे घण्टे से ज़्यादा हम यहाँ नहीं रहे होंगे और आगे के सफर के लिए तैयार हो गए। कोच में बैठ कर हम लिस्बन के एक चर्च के पास आ गए,जिस का नाम तो याद नहीं लेकिन गाइड ने हमें बताया कि वास्कोडिगामा ने इंडिया का रास्ता ढूंढने से पहले इस चर्च में कामयाबी के लिए पराथना की थी।

यह चर्च एक आर्ट का नमूना था। इस में पुर्तगाल के बड़े बड़े पादरियों के बुत्त बने हुए थे। यह बहुत बड़ा चर्च था। देश बिदेश से बहुत लोग इस को देखने के लिए आये हुए थे और फोटो ले रहे थे। गाइड ने हमें बताया था कि वैसे तो वास्कोडिगामा की मृतु गोआ में हुई थी लेकिन कुछ सालों बाद उस की कुछ अस्थीयाँ यहां लाइ गई थीं और उस की आख़री रस्में यहां की गई थीं। उस की ग्रेव और उस के ऊपर वास्कोडिगामा का लेटे हुए का बुत्त है। इस चर्च के बाहर आ कर गाइड ने हमें एक और मौनूमैंट दिखाया। यह मौनूमैंट पुर्तगाल के राज में जितने देश थे, उन पर उन के झंडे बने हुए थे। यह झंडे पुर्तगाल के अपने बनाये हुए थे क्योंकि यहां भी यह राज करते थे, उन पर अपना झंडा लहराते थे। यह मौनूमैंट गोल चक्कर में था। यहां हम खड़े थे, उस के पास ही मैकडोनल्ड था। रीफ्रैशमैंट के लिए गाइड ने हमें कुछ वक्त दिया और सभी इस में जा घुसे। खा पी कर बाहर आये तो कोच वाला हमें बैलम पार्क ले गया। यह जगह लिज़बन की सब से प्रसिद्ध जगह है। यह पार्क बहुत सुन्दर है और यहां देखने के लिए बहुत कुछ है। क्योंकि इस पार्क के साथ ही समुन्दर तट है, जिस पर एक बहुत पुरानी मल्टीस्टोरी किले जैसी इमारत है। इस को देखने के लिए हम चल पड़े। इस किले जैसी इमारत में जाने के लिए उसी समय का एक लकड़ी का पुल बना हुआ है। इस किले में आर्ट की कोई ख़ास चीज़ नहीं है, बस इस की कई मंजिलें हैं और कुछ मंजिलों में तीन तरफ बहुत सी तोपें रखी हुई हैं, जिन का मुंह समुन्दर की ओर है। हमें बताया गया कि इस ऊंची बिल्डिंग का मकसद यही था कि अगर दुश्मन हमला करे तो यहां से उन के जहाज़ों को तबाह किया जाता था और ऐसे किले लिज़बन के इर्द गिर्द और भी थे जो इस शहर को बचाते थे।

इस को देख कर हम नीचे आ गए और पार्क में खड़े एक रेप्लिका ऐरोप्लेन को देखने लगे जो एक प्लैटफार्म पर रखा हुआ था। यह पुर्तगाल का एक ऐसा जहाज़ था जिस ने उस समय 1922 में साढ़े आठ हज़ार मील का सफर ऐटलांटिक ओशन के ऊपर करना था लेकिन इस में बहुत मुश्किलें आईं और समुन्दर में गिर गया। जो पायलेट थे, उन्होंको अंग्रेजों के एक जहाज़ के कैप्टन ने बचाया था। और भी बहुत कुछ बताया लेकिन याद नहीं। लोग इस जहाज़ की फोटो ले रहे थे और जसवंत ने भी कुछ फोटो ली। इस के एक ओर बहुत बड़ा पुराने ज़माने के जहाज़ जैसा मैमोरियल बना हुआ है। यह बहुत ऊंचा है। पहले यह 1940 में वर्ल्ड ऐग्ज़ीबीशन के लिए बनाया गया था लेकिन बाद में 1960 में हैनरी दी नेवीगेटर के निधन के पांच सौ साल पूरे होने पर नया बनाया गया था । इस के शिखर पर पहले हेनरी का बुत्त है, जिस के हाथ में छोटा सा शिप पकड़ा हुआ है। इस के पीछे अफॉन्सो का बुत्त है और इस के पीछे वास्कोडिगामा का। ऐसे ही सीड़ीओं की तरह बने स्टैपों पर परसिध लोगों के 25 बुत्त बने हुए हैं। जिस जगह यह मैमोरियल है, ठीक यहां से ही वास्कोडिगामा इंडिया का रास्ता ढूंढने के लिए शिप ले कर चला था। अब हमारा गाइड हमें कुछ आगे ले आया। यहां ज़मीन पर एक गोल चक्कर में दुनिआं का नक्शा बना हुआ है।

गाइड ने बताया कि कोई समय था जब पुर्तगाल के अधीन छोटे बड़े 52 देश थे जो धीरे धीरे आज़ाद हुए और सब से आखर में आज़ाद होने वाला चीन का मकाओ था जो शायद कुछ ही साल पहले आज़ाद हुआ है। इस नक़्शे में गाइड ने जो बताया, ज़्यादा तो याद नहीं लेकिन इतना याद है कि गाइड ने उस समय के ट्रेड रुट ही बताये थे कि कैसे उन के जहाज़रान वीओपर करते थे। गाइड क्रिस्टोफर बड़े गौरव के साथ बता रहा था कि उस समय पुर्तगाल इतना अमीर हो गया था कि लोगों ने अपने घरों में काम करने के लिए आम स्लेव रखे हुए थे और यह स्लेव बहुत सस्ते में मिल जाते थे क्योंकि स्लेव ट्रेड इतनी विकसित हो चुक्की थी कि जहाज़ों के जहाज़ भर भर कर अफ्रीका से स्लेव लाये जाते थे जिन की मंडी लेगोस में लगती थी, ( lagos में एक मयूज़ियम है ) । जंगलों से इन अफ्रीकन लोगों को पशुओं की तरह पकड़ा जाता था और पकड़ने के लिए भी अफ्रीकन लोग ही होते थे, जिन को बहुत पैसे दिए जाते थे। जब इन स्लेव लोगों को पकड़ कर जहाज़ में संगलों से बाँधा जाता था तो वहां की हालत बहुत खराब होती थी क्योंकि इतना गन्द होता था कि इस की बदबू के कारण ही बहुत स्लेव मर जाते थे और उन को समुन्दर में फैंक दिया जाता था।

इस घिरनत वीओपर के खिलाफ आवाज़ उठने लगी थी और सब से पहले अमरीका में इब्राहीम लिंकन ने यह वीओपर बन्द किया था और धीरे धीरे सभी यूर्पीन देशों में इस पर रोक लगा दी गई लेकिन कानून पास होने के बाद भी बहुत सालों तक यह वीओपर चलता रहा। हमारे गाइड ने यह बातें बताईं तो कुछ गोरों की आँखों में आंसू थे। अब हम फिर कोच में बैठ गए और ड्राइवर हमें एक बहुत बड़े शॉपिंग सेंटर में ले आया। इस को बने अभी कुछ वर्ष ही हुए थे, ऐसा हमे क्रिस्टोफर ने बताया। एक पार्क बसों और कोचों के लिए ही बनी हुई थी। कोच खड़ी हुई तो हम सीधे शॉपिंग माल में आ गए। जैसे ही हम दाखल हुए, पास ही एक सिनिमा हाल था, जिस पर एक बॉलीवुड फिल्म के पोस्टर लगे हुए थे लेकिन इंडियन कोई दिखाई नहीं देता था। हमें यह देख कर हैरानी हुई और जसवंत ने क्रिस्टोफर से इस के बारे में पुछा तो उस ने बताया कि यहाँ बॉलीवुड फ़िल्में बहुत लोग देखते हैं ख़ास कर वोह लोग जो अभी तक गोवा में आते जाते रहते हैं क्योंकि उन के रिश्तेदार गोआ में हैं।

आगे गए तो एक बहुत बड़ी फैंसी गुड्ज़ यानी शो पीस की दूकान थी,जिस में इंडिया के आर्ट की बहुत सी चीज़ें रखी हुई थीं, जैसे पुरातन मूर्तियां जो इंडिया के मंदिरों में होती हैं। आगे गए तो खाने पीने के लिए एक कैंटीन जैसी बड़ी सी कैफे थी,जिस में पुर्तगाल के बने केक थे जो बिलकुल ही इलग्ग टाइप के थे। बैठने के लिए काफी टेबल थे। कुलवंत और गियानो बैठ गईं। जब मैं और जसवंत चाय बगैर लेने गए तो काउंटर पर लड़कियां इंग्लिश नहीं बोलती थीं। हमारे लिए यह एक मुसीबत थी। इशारों से हम ने समझाया और चाय केक लेकर हंसते हंसते हम आ कर बैठ गए। कुछ भी हो एक बात थी कि केक बहुत मज़ेदार थे। चाय पी कर हम इधर उधर घुमते रहे और जो टाइम क्रिस्टोफर ने हम को दिया था, उस से कुछ मिंट पहले हम कोच में आ कर बैठ गए। अब अँधेरा हो चूका था। कोच चल पडी और रास्ते में कहीं भी खड़े नहीं होना था। सब थक चुक्के थे और कुछ लोग आँखें बन्द कर के बैठे थे। अब बाहर देखने का भी कोई फायदा नहीं था क्योंकि बाहर रौशनियों के सिवा कुछ भी नहीं दिखाई देता नहीं था। जब हम अलगाव पहुंचे तो बहुत रात बीत चुक्की थी। कमरे में आते ही गुड़ नाइट कह कर सभी सो गए। चलता. . . . . . . . .

8 thoughts on “मेरी कहानी 162

  • मनमोहन कुमार आर्य

    नमस्ते आदरणीय श्री गुरमेल सिंह जी। आज की क़िस्त भी जानकारियों से भरपूर है। बहुत सी नई बाते पता चली जिसमे एक यह भी कि वास्को डी गामा की मृतयु गोवा में हुई थी। पुर्तगाल ने ५२ देशों पर राज किया। आज की क़िस्त के लिए आपका धन्यवाद्। सादर।

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      धन्यवाद ,मनमोहन भाई .अगर हम लिजब्न न जाते तो शायद हमें भी मालूम ना होता . किसी समय पुर्तगाल यूरप में सब से अमीर देश होता था . सलेवरी के बारे में पढ़ा सुना तो पहले भी था लेकिन यहाँ आ कर पता चला किः अफ्रीकन लोगों पर कितने ज़ुल्म हुए थे .

  • राजकुमार कांदु

    आदरणीय भाईसाहब । हम आपके साथ पर्यटन का आनंद लेते हुए ऐतिहासिक जानकारियाँ भी हासिल करते जा रहे हैं । एक और नायाब कड़ी के लिए आपका आभार ।

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      धन्यवाद राजकुमार भाई .

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      धन्यवाद राजकुमार भाई .

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, आपको केक बहुत मज़ेदार लगा और हमें आपकी रोचक कथा की रोचक प्रस्तुति. एक और नायाब व सार्थक कड़ी के लिए आभार.

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      धन्यवाद लीला बहन , केक किस को मजेदार नहीं लगते ,मीठी तो हमेशा मीठी ही लगेगी .कड़ी पसंद करने के लिए धन्यावाद जी .

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      धन्यवाद लीला बहन , केक किस को मजेदार नहीं लगते ,मीठी तो हमेशा मीठी ही लगेगी .कड़ी पसंद करने के लिए धन्यावाद जी .

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