Author: जय प्रकाश भाटिया

कविता

भावना का बंधन

यह प्यार भावना का बंधन है, कोई समझौता या इकरार नहीं है, तुम खुल कर मुझसे प्यार करो,. या कह दो मन में प्यार नहीं है मैं प्यार करूँ, तुम बेवफ़ा रहो ,यह मुझको तो मंज़ूर नहीं है, या तुम खुल कर इंकार करो, यह खेल मुझे मंज़ूर नहीं है, मुझसे प्यार और मिलन किसी से, ये तो कोई रीत नहीं है, महफ़िल में गैरों की बाँहों में झूलो, यह तो सच्ची प्रीत नहीं है, मेरी हो तुम मेरे जीवन में,  क्यों न खुल कर स्वीकार करो सिर्फ़ मुहब्बत दिखालाने को मत झूठे वादे बारंबार करो, न मैं खुद को बदल सका हूँ, न तुम खुद को बदल सकोगे, कर लो किस्सा ख़त्म यहीं, बस इतना मुझ पर उपकार करो. यह प्यार भावना का बंधन है, कोई समझौता या इकरार नहीं है, तुम खुल कर मुझसे प्यार करो,. या कह दो मन में प्यार नहीं है —जय प्रकाश भाटिया

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कविता

कैसे हो क्या हाल है?

आज जिस इंसान से भी पूछो, “कैसे हो क्या हाल है”, जवाब एक ही है… बस कट रही है, बस गुजर रही है, वक़्त बीत रहा है, बस जी रहें हैं , और जीना सभी चाहते हैं , मरना कोई नहीं, मौत के नाम से भी डर लगता है, फिर भी… ज़िंदगी कोई नहीं जीता…. बस मर मर कर जीते है लोग… क्यों… भगवान के इस अनमोल जीवन दान को क्यों भूल जाते हैं लोग, भाग्यवान हैं हम, सबसे सर्वश्रेष्ठ योनि में जन्म पाया है.. विकसित दिमाग है, , चंचल मन है, प्यार भरा दिल है,.क्रियाशील तन है यह तो प्रभु के उपकार का अपमान है… जिओ, और ऐसे जिओ.. जैसे सब तुम्हारा है… यह ज़िंदगी प्रभु का वरदान है, एक उपहार है

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