गज़ल
खामोश अकसर जब भी मैं रहता हूँ। तुम समझते हो मैं चुप ही रहता हूँ। हर बार शब्दों का शौर
Read Moreसरहदों को सुरक्षित रखता रहा। खुद को यूंही समर्पित करता रहा। भेद नहीं आता जाति पंथ का सबको बस इन्सान
Read Moreजितने सुख एक इन्सान की चाहत होते हैं लगभग वो सब मीना के घर पर थे। शादी के बाद भी
Read Moreबाहर इतनी सर्दी थी कि हाथ पैर सुन्न हो रहे थे मगर शोभा तो डर से पसीना पसीना हो रही
Read Moreज्ञान का उजियारा फैलाया! भारत का भगवा फहराया! देश का अपने गौरव बड़ाया! ज्ञान का दीप ऐसा जलाया! भूल न
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