गज़ल
कहीं बंद किवाड़ों में भी आरज़ू सिसकती होगी। अपने अरमानों को पूरा करने को तरसती होगी। कुछ बेड़ियां बेवजह कायम
Read Moreहंसते खेलते बंटी के बचपन पर तो जैसे कभी खत्म न होने वाले दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था। पिता
Read Moreआधुनिक नारी आधुनिक नारी यह तो है सब पे भारी। कोई न पाए पार ऐसी इसमें होशियारी। जीवन इसका व्यस्त
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