कविता : वक्त…
माना मुट्ठी से रेत की तरह फिसलता जाता है यह वक्त ! चाहकर भी कोई नहीं वापिस पा सकता है
Read Moreमाना मुट्ठी से रेत की तरह फिसलता जाता है यह वक्त ! चाहकर भी कोई नहीं वापिस पा सकता है
Read More१ करके खता भी हर बार तुम खफा होते रहे , तेरी राहों में चिरागे रोशनी फिर भी ना हमने
Read Moreजाने किस कुसूर की मिलती है सज़ा ! क्यूं चुप है यह समाज और यह जहाँ ! बीत रहे थे
Read Moreकभी -कभी रिश्तों में अलगाव की वजह, इतनी छोटी सी बात से हो जाती है कि समय के साथ -साथ
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