कहानी

परदेस

आज मीरा की आँखें खुशी से चमक उठी थी वो खुशी जो बरसो बाद मीरा के चेहरे पर आई थी। मीरा को रह रहकर अपने पुराने दिन एक एक करके याद आने लगे थे कि कैसे जब वो शादी के बाद अपने ससुराल आई थी। सोहन ने मीरा को कोई कमी महसूस नहीं होने दी थी। मीरा की शादी सोहन से हुई थी ससुराल तो यहीं थे पर सोहन की नौकरी दुबई में थी। मीरा को भी न चाहते हुए परदेस जाना पड़ा था वो बहुत ही खुशमिजाज थी। वो अपने ममी पापा की इकलौती बेटी थी उनका सहारा थी पर पिया संग परदेस जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं था। वो अपने आँसुओं को सबसे छुपाती सोहन के साथ जाने की तैयारी करने लगी। अभी वो सोहन को अच्छे से जानती नहीं थी इसलिए अपने दिल की बात न कर पाई थी। मीरा जानती थी अब चाहकर भी वो अपने ममी पापा से जल्दी नहीं मिल पाया करेगी और अपने ससुराल वालों की सेवा का उनके साथ रहने का मौका नहीं मिल पाएगा। जेठानी के रूप में एक सहेली और बहन का साथ भी नहीं मिलेगा। उसकीमाज़ी थीकि ससुराल रौनक हो सभी हों जिनसे वो मिरकर रह सके। सास तो नहीं थी ससुर जी थे जिनका काफी अच्छा व्यवसाय था वो बड़े बेटे और बहु के साथ रहते थे। मीरा का सरल और अच्छा स्वभाव उनको भा गया था उन्होने मीरा के ममी पापा से उसका हाथ अपने बेटे सोहन के लिए मांग लिया था अब वो बेफिक्र थे कि मीरा सोहन का ख्याल रखेगी। सोहन तीन चार साल से दुबई में ही था। उनको लगता था कि सोहन की शादी हो जाएगी तो वो भी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाएंगे। मीरा ससुराल में रहना चाहती थी जिससे वो अपने ससुर जी और जेठ जेठानी के साथ मिलजुलकर रह सके और ममी पापा की भी खबर मिलती रहे आखिर वो ही तो उनका सहारा थी। दुबई जाकर मीरा मुरझा सी गई थी सोहन अपने काम में व्यस्त रहते और मीरा घर का काम निपटाकर सारा दिन चुपचाप बैठी रहती न कोई अपना दिखता जिससे दिल की बात हो सके। फोन पर ही कभी कभी हाल पूछ लेती पर मन को तसल्ली नहीं होती लगता कि कोई कुछ छुपा न रहा हो कि मीरा परेशान न हो जाए। जैसे तैसे मीरा के दिन कट रहे थे सोहन तो अच्छे थे अपने काम से आने के बाद उसका ख्याल रखते कभी कभी बाहर भी ले जाते थे पर मीरा का मन परदेस में नहीं लगता था। सोहन अंदर ही अंदर भांप चुका था कि मीरा मन ही मन में बहुत उदास है वो यहां खुश नहीं है पर सोहन भी मजबूर था इतनी जल्दी घर भी नहीं जाया जाता था कम से कम छ:महीने या साल दो साल के बाद ही जाना होता था और मीरा चार दिनों में ससुराल और मायके में बंटी सी ज़िंदगी जीकर वापिस परदेस आ जाती थी। पर एक दिन अचानक सोहन के लिए एक फोन आया भारत में एक मल्टीनैशनल कंपनी की तरफ से बहुत अच्छा पैकेज था। सोहन को भी बहुत पसंद आया क्योंकि दुबई में जिस कंपनी में काम करता था उसके पहले उसने भारत में उसी मल्टीनैशनल कंपनी के लिए एक कौशिश की थी उसकी भी पहली मर्ज़ी भारत में ही रहकर अपने मुताबिक नौकरी करने की थी पर तब कोई जवाब न मिला था अभी पिछली बार भारत जब गया था तो एक बार फिर कोशिश की तो जवाब आ गया था। सोहन भी बहुत खुश था उसे अपनी मर्ज़ी की नौकरी मिल रही थी और घरवालों का साथ भी और मीरा भी क्योंकि परदेस में वो सिर्फ दिन ही काट रही थी। उसकी खुशी का ठिकाना न रहा कि अब वो ससुराल में रहकर सबका साथ मिलेगा रौनक भी और ममी पापा से भी मिलने का मौका मिला करेगा।

कामनी गुप्ता

माता जी का नाम - स्व.रानी गुप्ता पिता जी का नाम - श्री सुभाष चन्द्र गुप्ता जन्म स्थान - जम्मू पढ़ाई - M.sc. in mathematics अभी तक भाषा सहोदरी सोपान -2 का साँझा संग्रह से लेखन की शुरूआत की है |अभी और अच्छा कर पाऊँ इसके लिए प्रयासरत रहूंगी |